पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३११

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अध्याय १४ : 'कुली लोकेशन' या भंगी-टोला ? २९१ रख गये और अब भी हैं वहां हिंदुस्तानियोंको कोई हक-मिल्कियत नहीं है; परंतु जोहान्सबर्ग के इस लोकेशनमें जमीनका ९९ सालका पट्टा कर दिया गया था । इसमें हिंदुस्तानियोंकी बड़ी गिचपिच बस्ती श्री । अबदी तो बढ़ती जाती थी; किंतु लोकेशन जितनेका उतना ही बना था। उसके पाखाने तो ज्यों-यों करके साफ किये जाते थे; परंतु इसके अलावा म्युनिसिपैलिटीकी तरफसे और कोई देखभाल नहीं होती थी । ऐसी दशामें सड़क और रोशनीका तो पता ही कैसे चल सकता था ? इस तरह जहां लोगोंके पाखाने-पेशाबकी सफाईके विषयमें ही परवाह नहीं की जाती थी वहां दूसरी सफाईका तो पूछना ही क्या ? फिर जो हिंदुस्तानी वहां रहते थे वे नगर-सुधार, स्वच्छता, आरोग्य इत्यादि के नियमोंके जानकार सुशिक्षित अौर आदर्श भारतीय नहीं थे कि जिन्हें म्युनिसिपैलिटीकी सहायता की' अथवा उनकी रहन-सहनपर देखभाल करनेकी जरूरत न थी। हां, यदि वहां ऐसे भारतवासी जा बसे होते जो जंगल में मंगल कर सकते हैं, जो मिट्टीमेसे मेरा पैदा कर सकते हैं। तब तो उनका इतिहास' जुदा ही होता । ऐसे बह-संख्यक लोग दुनियामें कहीं भी देश छोड़कर विदेशों में मारे-मारे फिरते देखें ही नहीं जाते । आम तौरपर लोग धन और धंधे के लिए विदेशों में भटकते हैं; परंतु हिंदुस्तानसे तो वहां अधिकांशमें अपई, गरीब, दीन-दुखी' मजूर लोग ही गये थे । इन्हें तो कदम-कदमपर रहनुमाई और रक्षणकी आवश्यकता थी। हां, उनके पीछे वहां व्यापारी तथा दूसरी श्रेणियोंके स्वतंत्र भारतवासी' भी गये; परंतु वे तो उनके मुकाबिलेमें मुट्ठी-भर थे ।। इस तरह स्वच्छता-रक्षक विभागकी अक्षम्य गफलतले और भारतीय निवासियोंके अज्ञानसे लोकेशनकी स्थिति आरोग्यकी दृष्टिसे अवश्य बहुत खराब थी। उसे सुधारने की जरा भी उचित कोशिश सुधार-विभागने नहीं की ! इतना ही नहीं, बल्कि अपनी ही इस गलती से उत्पन्न खरबीका बहाना बनाकर उसने इस लोकेशनको मिटा देनेका निश्चय किया और उस जमीनपर कब्जा कर लेनेकी सत्ता वहाँकी धारा-सभासे प्राप्त कर ली। जन मैं जोहान्सबर्ग में रह्ने गया तब वहाँकी यह स्थिति हो रही श्री ।। । वहाँके निवासी अपनी-अपनी जमीनके मालिक थे। इसलिए उन्हें कुछ हर्जाना देना जरूरी था ! हृरजानेकी रकम तय करनेके लिए एक खांस