पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३१४

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३४ क-कथा : भाग ४ शिकार हुए और अपन, भयंकर अवस्था लेकर ये लोकेशनमें अपने घर आये ।। इन दिनों भाई मदनजीत ‘इंडियन ओपीनियन के ग्राहक बनाने और चंदा वसूल करने यहां प्राये हुए थे । वह लोकेशनमें चक्कर लगा रहे थे । वह काफी हिम्मतवर थे । इन बीमारोंको देखते ही उनका दिल टूक-टूक होने लगा। उन्होंने मुझे पेंसिलसे लिखकर एक चिट भेजी, जिसको भनार्थ यह था--- “ यहां एकाएक काला प्लेग फैल गया है। आपको तुरंत यहां आकर कुछ सहायता करनी चाहिए. नहीं तो बड़ी खराबी होगी । तुरंत अाइए ।' मदनजीतने बेधड़क होकर एक खाली मकानको ताला तोड़ डाला और उसमें इन बीमारोंको लाकर रक्खा। मैं साइकिलपर चढ़कर 'लोकेशन में पहुंचः । वहांसे टाउन-क्लर्कको खबर भेजी और कहलाया कि किस हालतमें मकान्नका ताला तोड़ लेना पड़ा । । डाक्टर विलियम गाडझे जोहान्सबर्ग में डाक्टरी करते थे । वह खवर मिलते ही दौड़े आये और बीमारोंके डॉक्टर और परिचारक दोनों बन गये । परंतु बीमार थे तेईस और सेवक थे हम तीन ! इतनेसे काम चलना कठिन था । | अनुभवोंके आधारपर मेरा यह विश्वास बन गया है कि यदि नीयत साफ हो तो संकटके समय सेवक और साधन कहीं-न-कहींसे आ जुटते हैं। मेरे दफ्तरमें कल्याणदास, माणिकलाल और दूसरे दो हिंदुस्तानी थे । आखिर दोके नाम इस समय मुझे याद नहीं हैं। कल्याणदासको उसके बाद मुझे सौंप रखा था। उनके जैसे परोपकारी और केवल आज्ञा-पालनसे काम रखने वाले सेवक नैने वहां बहुत थोड़े देखे होंगरे । सौभाग्यसे कल्याणदास उस समय ब्रह्मचारी थे । इसलिए उन्हें में कैसे भी खतरेका काम सौंपते हुए कभी न हिचकता । दुसरे व्यक्ति माणिकलाल मुझे जोहान्सबर्ग में ही मिले थे । मेरा खयाल है कि वह भी कुंवारे ही थे । इन चारोंको चाहे कारकुन कहिए, चाहे साथी या पुत्र कहिए, मैंने इसमें होम देनेका निश्चय कर लिया । कल्याणदाससे तो पूछने की जरूरत ही नहीं थी, और दूसरे लोग पूछते ही तैयार हो गये । “जहां आप तहां हम' यह उनका संक्षिप्त .. और मीठा जवाव था । मि० रोचको परिवार बड़ा था । वह खुद तो कूद पड़नेके लिए तैयार थे; किंतु मैंने ही उन्हें ऐसा करनेसे रोका । उन्हें इस खतरेमें डालने के लिए मैं