पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३८२

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अध्याय ४२ : इलाज क्य? किया ? और कुछ बाह्य उपचारसे बीमारी जरूर अच्छी हो जानी चाहिए ।। १८९० ई० में मैं डाक्टर एलिसन से मिला था, जोकि फलाहारी थे और भोजनके परिवर्तन द्वारा ही बीमारियोंका इलाज करते थे। मैंने उन्हें बुलाया । उन्होंने आकर मेरा शरीर देखा। तब मैंने उनसे अपने दूधके विरोधका जिक्र किया । इन्होंने मुझे दिलासा दिया और कहा, “दुबकी कोई जरूरत नहीं । मैं तो ग्रापको कुछ दिन ऐसी ही खुराकपर रखना चाहता हूं, जिसमें किसी तरह चका अंश न हो।' यह कहकर पहले तो मुझे सिर्फ सूखी रोटी, कच्चे शाक और फलपर ही रहने को कहा । कच्चे शकोंमें भूली, प्याज तथा इसी तरहकी दूसरी चीजें और सब्जी एवं फलोमें खासकर नारंगी । इन शाकको कीसकर या पीसकर खानेकी विधि बताई थी । कोई तीनेक दिन इसपर रहा होऊंगा। परंतु कच्चे शाक मुझे बहुत मुफिक नहीं हुए। मेरे शरीर की हालत ऐसी नहीं थी कि वह प्रयोग विधिपूर्वक किया जा सके, और न उस समय मेरा इस बातपर विश्वास ही था । इसके अलावा उन्होंने इतनी बातें और वताई---- चौबीसों घंटे खिड़की खुली रखना, रोज गुनगुने पानी में नहाना, दर्द की जगहपर तेल मलना और रावअाध घंटे तक खुली हवामें घूमना । यह सब मुझे पसंद आया । घरमें खिड़कियां इसेंच-लर्जकी थीं । उनको सारा खोल देनेसे अंदर का पानी अाता था। ऊपरका रोशनदान ऐसा नहीं था जो खुल सकता। इसलिए उसके कांच तुड़वाकर वहांसे चौबीसों घंटे हवा अानेका रास्ता कर लिया । फुच खिड़कियां इतनी खुली रखता था कि जिससे पानीकी बौछारें भीतर न आने पावें ।।. इतना सब करनेसे स्वास्थ्य कुछ सुधरा जरूर। अभी बिलकुल अच्छ। तो नहीं हो पाया था। कभी-कभी लेडी सिसिलिया राबर्ट्स मुझे देखने आतीं । उनसे मेरा अच्छा परिचय हो गया था ! उसकी प्रबल इच्छा थी कि मैं दुध पिया करू । सो. तो मैं करता नहीं था। इसलिए उन्होंने दूधके गुणवाले पदार्थोकी छानबीन शुरू की। उनके किसी मित्रने ‘माल्टेड सिल्क' बताया और अनजामें ही उन्होंने कह दिया कि इसमें दुधका लेशमात्र नहीं है, बल्कि रासायनिक विधिसे बनाई दूधके गुण रखनेवाली वस्तुओंकी बुकनी है। मैं यह जान चुका था कि लेडी राबर्टस भेरी धार्मिक भावनाशको बड़े अदरकी दृष्टिसे देखती थी। इस कारण मैने उस बुकनीको पानी में डालकर पिया