पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३८३

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३६६ अात्म-कथा : भाग ४ तो मुझे उसमें दूध जैसा ही स्वाद आया । अब मैंने पानी पीकर जात पूछने,’ जैसी बात की । पी चुकनेके बाद बोतल पर लगी चिट को पढ़ा तो मालूम हुआ कि यह तो दूध की ही बनावट हैं । इसलिए एक ही बार पीकर उसे छोड़ देना पड़ा । लेडी राबर्टस को मैंने इसकी खबर की और लिखा कि आप ज़रा भी चिंता न करें। सुनते ही वह मेरे घर दौड़ आई और इस भूल पर बड़ा अफसोस प्रकट किया । उनके मित्र ने बोतलवाली चिट पढ़ी ही नहीं थी । मैंने इस भली बहन को तसल्ली दी और इस बात के लिए उनसे माफी माँगी कि जो चीज़ इतने कष्ट के साथ आपने भिजवाई, उसे मैं ग्रहण न कर सका । और मैंने उनसे यह भी कह दिया कि मैंने तो अनजाने में यह बुकनी ली हैं, सो इसके लिए मुझे पश्चाताप या प्रायश्चित्त करने का कोई कारण नहीं हैं ।

     लेडी राबर्टस के साथ के और भी मधुर संस्मरण हैं तो, पर उन्हें मैं यहाँ छोड़ ही देना चाहता हूं । ऐसे तो बहुत-से संस्मरण हैं जिनका महान आनंद मुझे बहुत विपत्तियों और विरोध में भी मिल सका है । श्रद्धावान् मनुष्य ऐसे मीठे संस्मरणों में यह देखता है कि ईश्वर जिस तरह दु:ख रूपी कडई औषध देता है उसी तरह वह मैत्री के मीठे अनुपान भी उसके साथ देता है ।
     दूसरी बार जब डाक्टर एलिन्सन देखने आये तो उन्होंने और भी चीज़ों की खाने की छुट्टी दी और शरीर में चर्बीं बढ़ाने के लिए मूंगफली आदि सूखे मेवों की चीज़ों का मक्खन अथवा जैतूनका तेल लेने के लिए कहा । कच्चे शाक मुआफिक न हों तो उन्हें पकाकर चावल के साथ लेने की सलाह दी । यह तजवीज मुझे बहुत मुआफिक हुई ।
     परंतु बीमारी अभी निर्मूल न हुई थी । संभाल रखने की ज़रूरत तो अभी थी ही। अभी बिछौने पर ही पड़ा रहना पड़ता था । डाक्टर मेहता बीच-बीच में आकर देख जाया करते थे और जब आते तभी कहा करते-- अगर मेरा इलाज कराओ तो देखते-देखते आराम हो जाय ।
     यह सब हो रहा था कि एक रोज मि० राबर्दूस मेरे घर आये और मुझे ज़ोर देकर कहा कि आप देश चले जाओ । उन्होंने कहा, “ऐसी हालत में आप नेटली हर्गिज़ नहीं जा सकते । कड़ाकेका जाड़ा तो अभी आगे आनेवाला है । में तो आग्रह के साथ कहता हूँ कि आप देश चले जाएँ और वहाँ चंगे हो