पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

एक ही प्रसंगका स्मरण मुझे होता है कि जब मेरे मुवक्किलकी जीत हो जानेके बाद मुझे ऐसा शक हुआ कि उसने मुझे धोखा दिया। मेरे अंत:करणमें भी हमेशा यही भाव रहा करता कि यदि मेरे मवविकलका पक्ष सच्चा हो तो उसकी जीत हो। और झूठा हो तो उसकी हार हो । मुझे यह नहीं याद पड़ता कि मैंने अपनी फीसकी दर मामलेकी हार-जीतपर निश्चित की हो । मवक्किलकी हार है। या जीत, मैं तो हमेशा मिहनताना ही मांगता और जीत होने के बाद भी उसीकी आशा रखता। मक्किलको भी पहले ही कह देता कि यदि मामला झूठा हो तो मेरे पासु न आना । गवाहोंको बनानेका काम करनेकी अशा मुझसे में रखना । आगे जाकर तो मेरी ऐसी साख बढ़ गई थी कि कोई झूठा मामला मेरे पास लाता ही नहीं था। ऐसे मवक्किल, भी मेरे पास थे जो अपने सच्चे मामले ही मेरे पास लाते और जिनमें जरा भी गंदगी होती तो वे दूसरे वकीलके पास ले जाते ।। । एक ऐसा समय भी आया था कि जिसमें मेरी बड़ी कड़ी परीक्षा हुई । एक मेरे अच्छे-से-अच्छे. भवक्किलका मामिला था। उसमें जमाखर्चको बहुतेरी उलझनें थीं ! . बहुत समय सामला चल रहा था। कितनी ही अदालतोंमें उसके कुछ-कुछ हिस्से गये थे। अंतको अदालत द्वारा नियुक्त हिसाब-परीक्षक पंचोंके जिम्मे उसका हिसाब सौंपा गया था । पंचके ठहरावके अनुसार मेरे भवक्विालकी पूरी जीत होती श्री'; परंतु उसके हिसाबमें एक छोटी-सी परंतु भारी भूल रह शुई थी । जमानामेकी रकम पंचकी झुलसे उलटी लिख दी गई थी। विपक्षीने इस पंचके फैसलेको रद्द करनेकी दरख्वास्त दी थी । मेरे मवकिलकी तरफसे मैं छोटा वकील था ! बड़े वकीलने पंचकी भूल देख ली थी; परंतु उनकी राय यह थी कि पंचकी भूल कबूल करनेके लिए मुवक्किल बाध्य नहीं था; उनकी यह साफ यि थी कि अपने खिलाफ जानेवाली किसी बातको मंजूर करनेके लिए कोई वकील बाध्य नहीं है । पर मैंने कहा, इस मामलेकी भूल तो हमें कबूल करनी ही चाहिए । .... बड़े वकीलने कहा--- "यदि ऐसा करें तो इस बातका पूरा अंदेशा हैं। कि अदालत इस सारे फैसलेको रद्द कर दे और कोई भी समझदार वकील अपने मवक्किलको ऐसी जोखिममें नहीं डालेगा । मैं तो ऐसी' जोखिम उठानेके लिए कभी तैयार न होऊंगा । यदि मामला उलट जाय तो मवक्किलको कितना खर्च