पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४०७

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तीसरे दर्जेकी फजीहते बर्दवान पहुंचकर हम तीसरे दर्जेका टिकट लेना चाहते थे; पर टिकट लेनेमें बड़ी मुसीबत हुई । टिकट लेने पहुंचा तो जवाब मिला--- " तीसरे दर्जे के मुसाफिरके लिए पहलेसे टिकट नहीं दिया जाता।" तब स्टेशन-मास्टर के पास गया। मुझे भला वहां कौन जाने देता? किसीने दया करके बताया कि स्टेशन'मास्टर वहां हैं। मैं पहुंचा। उनके पाससे भी वहीं उत्तर मिला । जब खिड़की खुली तब टिकट लेने गया; परंतु टिकट मिलना आसान नहीं था। हट्टे-कट्टे मुसाफिर मुझ-जैसोंको पीछे धकेलकर आगे घुस जाते। आखिर टिकट तो किसी तरह मिल गया ।। गाड़ी झाई। उसमें भी जो जबर्दस्त थे, वे घुस गये । उतरनेवालों और चढ़नेवालोंके सिर टकराने लगे और धक्का-मुक्की होने लगी। इसमें भला मैं कैसे शरीक हो सकता था ? इसलिए हम दोनों एक जगहसे दूसरी जगह जाते ।। सब जगहसे यही जवाब मिलता--- " यहां जगह नहीं है ।" तब मैं गार्डके पास गया। उसने जवाब दिया--- " जगह मिले तो बैठ जाओ, नहीं तो दूसरी गाड़ीसे जाना ।” मैंने नरमी से उत्तर दिया--- " पर मुझे जरूरी काम है । गार्डको यह सुननेका वक्त नहीं था । अब मैं सब तरहसे हार गया । मगनलालसे कहा--- " जहां जगह मिल जाय, बैठ जाओ।" और मैं पत्नीको लेकर तीसरे दर्जेके टिकटसे ही ड्यौढ़े दर्जे में घुसा। गार्डने मुझे उसमें जाते हुए देख लिया था । • आसनसोल स्टेशनपर गार्ड ड्यौढ़े दर्जेका किराया लेने आया । मैंने कहा--- " आपका फर्ज था कि आप मुझे जगह बताते । वहां जगह न मिलने से मैं यहां बैठ गया। मुझे तीसरे दर्जेमें जगह दिलाइए तो मैं वहां जानेको तैयार हूं।" ...गार्ड साहव बोले- “मुझसे तुम दलील न करो । मेरे पास जगह : नहीं है, किराया न दोगे तो तुमको गाड़ीसे उतर जाना होगा।" मुझे तो किसी तरह जल्दी पूना पहुंचना था । गार्डसे लड़ने की मेरी : हिम्मत नहीं थी । लाचार होकर मैंने किराया चुका दिया । उसने ठेठ पुनातक