पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४३५

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४१८ वि-कथा : भाग ५ समनकी बात एक क्षण में चारों ओर फैल गई और लोग कहते थे कि ऐसा दृश्य मोतीहारीमें पहले कभी नहीं देखा गया था । गोरखबाबूके घर और अदालतमें खचाखच भीड़ हो गई । खुशकिस्मतीसे मैंने अपना सारा काम रातको ही खतम कर लिया था, इससे उस भीड़का मैं इंतजाम कर सका। इस समय अपने साथियों की पूरी-पूरी कीमत देखने का मुझे मौका मिला। वे लोगोंको नियमके अंदर रखनेमें जुट पड़े । अदालतमें मैं जहां जाता वहीं लोगोंकी भीड़ मेरे पीछे-पीछे आती। कलेक्टर, मजिस्ट्रेट, सुपरिंटेंडेंट वगैरा के और मेरे दर मियान भी एक तरहका अच्छा संबंध हो गया। सरकारी नोटिस इत्यादिका अगर मैं बाकायदा विरोध करता तो कर सकता था; परंतु ऐसा करनेके बजाय मैंने उनके तमाम नोटिसको मंजूर कर लिया। फिर राज-कर्मचारियोंके साथ मेरे जाती ताल्लुकातमें जिस मिठासको मैंने अवलंबन किया उससे वे समझ गये कि मैं उनका विरोध नहीं करना चाहता। बल्कि उनके हुक्मका सविनय विरोध करना चाहता हूं । इससे वे एक प्रकार निश्चित हुए । मुझे दिक करनेके बजाय उन्होंने लोगोंको नियममें रखनेके काममें मेरी और मेरे साथियोंकी सहायता खुशीसे ली; पर साथ ही वे यह भी समझ गये कि आजसे हमारी सत्ता यहांसे उठ गई। लोग थोड़ी देरके लिए सजाका भय छोड़कर अपने नये मित्रके प्रेमकी सत्ताके अधीन हो गये ।। । यहां पाठक याद रखें कि चंपारनमें मुझे कोई पहचानता न था । किसान लोग बिलकुल अनपढ़ थे। चंपारन गंगाके उस पार, ठेठ हिमालयकी तराईमें नेपालके नजदीकका हिस्सा है। उसे नई दुनिया ही कहना चाहिए। यहां कांग्रेसका नाम-निशान भी नहीं था, न उसके कोई मेंबर ही थे। जिन लोगोंने कांग्रेसका नाम सुन रखा था वे उसका नाम लेते हुए और उसमें शरीक होते हुए डरते थे; पर आज वहां कांग्रेसके नामके बिना कांग्रेसने और कांग्रेसके सेवकोंने प्रवेश किया और कांग्रेसकी दुहाई धूम गई । साथियोंके साथ कुछ सलाह करके मैंने यह निश्चय किया था कि कांग्रेसके नामपर कुछ भी काम यहां न किया जाय । हमको नामसे नहीं कामसे मतलब है। कथनीकी---कहतेकी----नहीं, करन की जरूरत है। कांग्रेसका नाम यहां लोगोंको खलता है। इस प्रांतमें कांग्रेसका अर्थ है वकीलोंकी तू-तू, मैं-मैं,