पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४७१

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४५४ आत्म-कथा :भाग ५ कटुता कुछ कम हो गई है और जिस राज्यसताने सविनय कानूनभंग सहन कर लिया है वह लोकमतका सर्वथा अनादर नहीं करेगी, ऐसा उनको विशवास हो गया है । इसलिए मैं यह मानता हूं कि चंपारन और खेड़ामें मैंने जो कार्य किया है वह लड़ाईके संबंधमें मेरी सेव्रा ही है । यदि आप मुझे इस प्रकारका कार्य बंद करनको कहेंगे तो मैं यही समझुंगा कि आप मुझे अपने शवासको ही रोक देनेके लिए कहते हैं । यदि शस्र-बलके स्थानमें मुझे अात्मबल अर्थात् प्रेमबलको लोकप्रिय बनानेमें सफलता मिले तो मैं यह जानता हूं कि हिंदुस्तानपर सारे विशवकी त्योरी चढ़ जाय तो भी वह उसका सामना कर सकेगा । इसलिए हर समय कष्ट सहन करनेकी इस सनातन रीतिको अपने जीवनमें उतारनेके लिए मैं अपनी आत्माको कसता रहूंगा और दूसरोंको भी इस नीतिको अंगीकार करने के लिए कहता रहूंगा। और यदि में कोई और काम करता भी हूं तो वह इसी नीतिकी अद्वितीय उत्तमता सिद्ध करनेके लिए ही । “ अंतमें मैं आपसे विनती करता हूं कि आप मुसलमान राज्योंके बारेमे निशिचत विशवास दिलानेकी प्रेरणा ब्रिटिश प्रधानमंडलको करें । आप जानते हैं कि इस विषयमें प्रत्येक मुसलमानको चिंता बनी रहती है । एक हिंदू होकर मैं उनकी इस चिंताके प्रति लापरवाह नहीं रह सकता हूं । उनका दु:ख तो हमारा ही दु:ख है । मुसलमानी राज्यके हकोंकी रक्षा करनेमें, उनके धर्मस्थानोंके विषयमें उनके भावोंका आदर करनेमें और हिंदुस्तानकी होमरूलकी मांग स्वीकार करनेमें साम्राज्यकी सलामती है । मैंने यह पत्र इसलिए लिखा है कि मैं अंग्रेजोंको चाहता हूं और अंग्रेजोंमें जैसी वफादारी है, वैसी ही में प्रत्येक भारतीयममें जाग्रत करना चाहता हूं ।"