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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४९५

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आत्म-कथा : भाग ५ अोपनियन'से ही होगया था कि ऐसे अखबारोंके लिए निजका छापाखाना जरूर चाहिए । 'फिर उस समय अखबारोंके संबंधमें कानून-कायदे भी ऐसे थे कि मैं जो विचार करना चाहूं उन्हें व्यापारकी दृष्टिसे चलने वाले छापाखाने छापते हुए सकुचाते थे । स्वतंत्र छापाखाना खोलने का यह भी एक प्रबल कारण था । और हालत यह थी कि यह अहमदाबाद में ही आसानी से हो सकता था। इसलिए 'यंग इंडिया' को अहमदाबाद ले गये ।। . इन अखबारों के द्वारा मैंने सत्याग्नहकी तालीम लोगों को यथाशक्ति देना शुरू की। दोनों अखबारोंकी खपत पहले बहुत कम थी, बढ़ते-बढ़ते ४०,००० के आसपास जा पहुंची थी। नवजीवन की बिक्री एकदम बढ़ी, जबकि 'यंग- इंडिया' की धीरे-धीरे। मेरे जेल जानेके बाद उनकी बिक्रीमें घटी आई और आज दोनोंकी बिक्री आठ हजारसे नीचे चली गई है । • इन अखबारों में विज्ञापन न छापने का मेरा अाग्रह शुरूसे हीं था। मेरी धारणा है कि इससे कुछ भी हानि नहीं हुई है और अखबारोंक विचार-स्वतंत्रता बनाये रखनेमें इस प्रथाने बहुत मदद की है । | इन अखबारोके द्वारा मैं मनमें शांति प्राप्त कर सका। क्योंकि यद्यपि मैं तुरंत सविनय-भंग न कर सका, मुगर तो भी अपने विचार आजादीके साथ जनताके सामने रख सका । जो मेरी मुंह जोह रहे थे, उन्हें आश्वासन दे सका और मुझे लगता है कि दोनों पुत्रोंने उस कठिन प्रसंगपर जनताकी ठीक-ठीक सेवा की और फौज कानूनके जुल्मको हलका करनेमें अच्छा काम किया । ३५ पंजाबमें पंजाबमें जो कुछ हुआ, उसके लिए सर माइकेल ओड्वायरने मुझे गुनह- गार ठहराया था। इधर वहांके कई नौजवान फौजी कानूनके लिए भी मुझे गुनहगार ठहराने में हिचकते न थे । क्रोधके आवेशमें वे यह दलील देते थे कि यदि मैंने सविनय कानून-भंग मुल्तवी ने किया होता तो जलियांवाला बागमें कभी..