पृष्ठ:Songs and Hymns in Hindi.pdf/१२४

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११६ सच्चे खिष्टियान की आत्मिक गति । १०७ एक सौ सातवां गीत । 7s. १ भाई धर्म के में लड़ प्रात्मा की तलवार पकड़ बांध त धर्म के सत्र हथयार हो तैयार॥ करने जुतू २ आगे बढ़ मत हो भैमान जो कि वैरी हो बलवान न हो चलचित न निरास हारे क्यों मसीह का दास ॥ ३ हा बलवन्त और और धीर ईसा के समान हो धीर जो यह सङ्गी होता है तो हर बैरी खाता है । तब ४ और दिन दो एक आपको थांम तू पावेगा विसराम तब सब दुःख की होगी छय और त गावेगा जय जय ॥