पृष्ठ:Songs and Hymns in Hindi.pdf/१३१

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सच्चे खिष्टियान की आत्मिक गति । १२३ ११६ एक सौ सोलहवां गीत । भैरो . . भार भयो त अब लों सेायत उठ योशू गुन गावो रे। प्रात समय नब गीतहि गाए . चरनन सीस नवावा रे॥ भैरो रागाह भार अलायो प्रेम सुतान मिलावो रे। बीन मजीरा भेरि पखावज्ञ ऊचहि शब्द सुनावा रे॥ हिरदय जंत्र सुतंत्रहि साधो , सतकृत ताल लगायो रे । तान पुरा सुरनाई नादो . भक्ति सुधारस पावोरे गायन को गुण जोइ सिखावत • देत मधुर सुर भावो रे । जान अधम तुम सदगुन ताको . प्रातहि गाय रिझावो रे ॥ ॥ काउ TTT कत. गाई॥ ११७ एक सौ सत्तरहवां गीत । चजुरी तू भजि लेमन ज्ञान सहित . योश जगराई। काउ जपत बोर राम . कोउ भजत रसिकश्याम । रटत सीय नाम. मच्छ ब्राह नरहरि अरू परशुराम । गंग तिरट बौध धाम . चन्द मर कतिक कोटि सुरन देव . रचित सिलन माटि लेव। भ्रमित नरन रहहि सेव . अचरज मुलताई ॥ करहु चेत तुरति स्यान . इन्हन सेव हरहु प्रान । कहत बिनत अधम जान सदसत बिलगाई॥ कच्छ बाम. नाई॥ .