पृष्ठ:Songs and Hymns in Hindi.pdf/१७५

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भजन । १६० १६१ एक सौ इकसठवां गीत । सत्य मसीह जी को सुमरो भाई . तुम सरगधाम सुख पाई ॥ सुमरन कोजे चित में लीजे . शीलता पाई। अानन्द है के जय जय कोजे . अन्तर ध्यान लगाई॥ यह जिन्दगानी फूल समानी : धूप पड़े कुम्हलाई । अवसर चूक फेर पछितैहो । अाखिर धक्का खाई । जा चेते सो होत सवेरे . क्या सोचे मन लाई। कुल परिवार काम नहि आवे प्रान छूट छिन जाई॥ सत्य पदार्थ खीष्ट जग आये . सत्र पापी अपनाई निहचल बासकरो निश बासर • अमर नगर को जाई॥ अन्तर मैल भरो बहु भारी • सुधि बुधि में बसराई । यीशु नाम की विनती कीजे अवगुण में गुण पाई। . . १६२ एक सौ बासठवां गीत । पूर्वी ॥ . प्रेम सहित मन हमार यीश गुन गाउरे प्रेम के प्रताप पाप दूर ही दुराउरे । प्रेम सहित गुनन गाय अमर फलनि पाउरे। प्रेम से प्रबल नाही . कछुक दृष्टि पाउरे । विषय बंध काटि तुर्रात . मुक्तिहि अपनाउरे ॥ .