पृष्ठ:Songs and Hymns in Hindi.pdf/१८७

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गीत। १५६ है वह द्वार १०४ एक सौ चौहत्तरवां गीत। एक द्वारा खुला रहता है कि जिस से सदा याता एक नर जो कम से फैलता है मसीह का प्रेम बतलाता क्या यह हो सकता प्रेम अपार कि खुला रहा मुक्त का द्वार कि मैं कि मैं कि मैं प्रवेश करूं सबहां पर खुला जो उस से मुक्ति चाहते हर ज़ात हर कौम धनवान लाचार मुक्त उस में पहुंच पाते वगैरा पस मागे जा निडरी से कि अव द्वार खुला रहता सलोब उठा वह ताज जीत ले जो प्रेम अपार बख़श देता वगैरा सलीव जो मिला है यहां हम यरदन पार छोड़ देंगे मसीह से पाके ताज वहां नित उसका प्रेम करेंगे वगैरा।