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पृष्ठ:The Meaning of Relativity - Albert Einstein (1922).djvu/१७

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आपेक्षिकता से पूर्व की भौतिकी

तब दिक् निर्देश को यूक्लिडीन (Euclidean) और निर्देशांक को कार्तीय (Cartesian) कहते हैं।[] यह गृहीत अत्यंत छोटे अन्तराल (अल्पांश) के लिए पर्याप्त और यथार्थ बनाता है। इस परिकल्पना में शामिल कुछ ऐसे उदाहरण भी शामिल हैं जो कम महत्त्व रखते हैं जिनकी मूलभूत सार्थकता के बारे में हमें ध्यान देना चाहिए। सबसे पहले यह माना जाता है कि कोई किसी आदर्श दृढ़ पिण्ड को स्वेच्छ ढ़ंग से विस्थापित कर सकता है। दूसरा यह माना जाता है कि आदर्श दृढ़ पिण्ड को इसके अभिन्यास की तरफ का व्यवहार पिण्ड के पदार्थ और इसकी स्थिति में परिवर्तन से स्वतंत्र होता है, इस अर्थ में कि यदि दो अन्तरालों को एकबार सम्पातित स्थिति में लाया जा सकता है तो उन्हें हमेशा के लिए और प्रत्येक स्थान पर संपातित किया जा सकता है। ये दोनों परिकल्पनायें स्वाभाविक रूप से अनुभव से उत्पन्न होती हैं, जो कि ज्यामिति और विशेष रूप से भौतिक मापनों के लिए मूल महत्त्व की हैं; सामान्य आपेक्षिकता सिद्धान्त में इनकी वैधता केवल पिण्डों और दिक्-निर्देशों के लिए मानी जानी चाहिए जो खगोलीय विमाओं की तुलना में अत्यल्प हैं।

राशि को हम अन्तराल की लम्बाई कहते हैं। इस क्रम में इसका अद्वितीय मान ज्ञात करने के लिए निश्चित अन्तराल की लम्बाई को स्वेच्छ निर्धारित करना आवश्यक है; उदाहरण के लिए हम इसे I (लम्बाई की इकाई) के बराबर रख सकते हैं। तब अन्य सभी अन्तरालों की लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। यदि हम को प्राचल पर एकघाततः (समानुपाती) रखने पर,

  1. यह सम्बंध मूल बिन्दू (origin) और अनुपात की दिशा (अनुपात ) के यादृच्छिक चयन पर लागू होता है।