पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तुलसी चौरा :: १११
 

'तुम उन तीन दिनों के लिये पारू को स्कूल में छुट्टी दिलवा देना। कौड़ियाँ खेल लेगी तुम्हारे साथ।'

'अरे, तो क्या समझती है? मुझे अकेले में डर लगेगा।' कमली ने पूछा! उसकी इच्छा के अनुसार ही उस दिन शाम भूमिनाथपुरम के शिव मंदिर ले गयी। और एक विदेशी युवती को भारतीय परिधान में, पूजन सामग्री लेकर चलते देख लोग ठिठक गये। बसंती ने कमली को मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित करा दिया।

बसंती के साथ वह गर्भ गृह के समीप गयी। शर्मा जी के परिवार कुशल मंगल की कामना करती रही।

भूमिनाथपुरम का भव्य शिव मंदिर उसका कलात्मक सौन्दर्य और शिल्प उसे बेहद भाया।

लौटते में कमली ने बसँती से गद्गद स्वर में कहा, 'तुम लोगों के प्राचीन मंदिर कला के भंडार हैं। पर तुम्हारे यहाँ की युवा पीढ़ी तो अब सिनेमा थियेटरों में भक्ति भाव से जाने लगी है। मंदिर जाना कौन पसंद करता है? वहीं सिगरेट के धुएँ में उनकी पूजा अर्चना चलती है।'

'ठोक कहती हो, तुम। यहाँ मंदिरों से अधिक भीड़ टूरिंग थियेटरों में मिलेगी।'

'मैक्समूलर के जमाने से पश्चिमी देशों में पूर्व को सभ्यता और संस्कृति के प्रति एक आकर्षण उत्पन्न हो गया था। मैक्समूलर ने आक्सफोर्ड में वेद और उपनिषदों का अनुवाद कर उन्हें प्रकाशित करने का काम शुरू किया, तब से ही पश्चिम ने पूर्व की ओर देखना प्रारम्भ कर दिया। और तबसे यह भी होने लगा―कि तुम लोगों ने पश्चिम की ओर आँखें फाड़कर देखना शुरू किया और वहाँ की भौतिकवादी उपभोक्ता संस्कृति को अपनाना शुरू किया।'

सच कहती हो। आज भारत भौतिकवादी हो गया है।

स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी गरीबी इसकी सांस्कृतिक गरीबी