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तुलसी चौरा :: १५५
 

'सुना है, चार दिन का शास्त्र सम्मत विवाह होगा। और कैसा शास्त्र? सारा अनाचार कर डाला और शास्त्र का सहारा लिया जा रहा है।'

'यही नहीं, अस्पताल में पड़े उस नास्तिक को खून दिया है!'

'अरे इसके बाबा भी सरग से आ जाएँ तब भी वह नासपीटा नहीं बचेगा। अहमद अली की दुश्मनी मोल ले रखी है। मियां तो करोड़- पति है यह परचून वाला उसकी बराबरी करेगा?'

'पर मैंने तो सुना है कि उसकी दुकान चल निकली है। कहते हैं, दाम वाजिब है और चीजें भी साफ।'

'यह तो चालाकी है। कुछ दिन लोगों को आकर्षित करना है ना, पर इसकी असलियत तो आगे ही खुलेगी' सीमावय्यर ने बात काट दी। इरैमुडिमणि या शर्मा इन दोनों के बारे में लोगों के मन में थोड़ी सी भी जगह न बने इस संदर्भ में बेहद सतर्क थे। इरैमुडिमणि की दुकान की तारीफ उन्हें फूटी आँखें नहीं सूहा रही थी। शर्मा और इरैमुडिमणि को कोर्ट तक पीट कर मुकदमे का खर्चा स्वयं उठा लेने का आश्वासन―अहमद अली ने दिया था।

शर्मा जी ने उन्हें जमीन नहीं दी, यह अहमद अली की नाराजगी का कारण था। व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता ने इरैमुडिमणि के खिलाफ कर दिया था। लिहाजा शर्मा और इरैमुडिमणि को परेशान करने के लिये वे रुपये खर्च करने को तैयार थे।

कमली और रवि के विवाह की तैयारियाँ चल रही थीं तभी कोर्ट से कमली और शर्मा के नाम सम्मन जारी किये गये। कमली के मन्दिर प्रवेश से भूमिनाथपुरम और शंकरमंगलम के मन्दिरों की पवित्रता नष्ट हो गयी है, इसलिये पुनः शुद्धिकरण के लिये दस हजार रुपये का दावा किया गया था। उनके अनुसार कमली के मन्दिर प्रवेश से मन्दिर की पवित्रता भ्रष्ट हो गयी है। आस्तिक हिन्दुः अब वहाँ पूजन नहीं कर सकते। कुंभाभिषेक की तैयारियाँ किये जाने की मांग