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१८ :: तुलसी चौरा
 


चाहते थे। पर अपनी इस प्रबल इच्छा को कैसे प्रकट करते। लिहाजा चुप्पी साध गये।

‘अरे, काकू को दिखा दो न। देख लें वे भी’ वेणु काका बोले। फिर शर्मा को देखकर मुस्कुरा दिए। ‘शर्मा सोचो तो, मन में अगर थोड़ा भी छल कपट होता तो क्या वह अलबम भेंट में देती? फ्रैंच लोग होते ही हैं, इतने आत्मीय। और आपके रवि की यह जो कमली है न, अद्भुत लड़की है। उससे तो दिन भर बातें की जा सकती हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है। ‘फ्रांस ईज नाट एक कंट्री बट एन आयडिया’―उस पर पूरी तरह चरितार्थ होती है।’

देणु काका के मुँह से कमली की प्रशंसा सुनकर शर्मा जी सोचने लगे। बसंती ने भी खासी तारीफ ही की थी। अब काका भी! शर्मा जी को एक बात साफ समझ में आ गयी। कमली और रवि को अलगाने में इन लोगों से कोई मदद उन्हें नहीं मिल सकती।

उन्हें याद आया कि काका बातों-बातों में ‘रवि की बो’ कहते हुए अटक गये थे। शायद पत्नी कहना चाहते रहे हों और उनका लिहाज कर रुक गये हों। क्या पता वहाँ थे लोग अँगूठी-वगूँठी बदलकर पति पत्नी ही बन गये हों, और यहाँ ये टापते ही रह जाएँ।

बसंती के अलबम ला कर दी। पहला चित्र बर्फ पर फिसलते रवि और उस फिरंगिन का था।

बसंती ने कहा, ‘यह चित्र स्विट्जरलैंड का है। जब वे दोनों वहाँ घूमने गये थे...।’

‘शर्मा जी, फोटो देखकर यह मत समझ लें कि लड़की सिर्फ घूमने फिरने वाली तितली है। आप सारा यूरोप छान डालें, ऐसी बुद्धिमान लड़की नहीं मिलेगी। फ्रैंच के अलावा जर्मन, अंग्रेजी भी जानती है। रवि से संस्कृत, तमिल और हिन्दी भी सीख रही है!’

शर्मा ने अगला पृष्ठ पलटा।

‘यह बेनिस में लिया गया है। इटली में इसे तैरता शहर कहते