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तुलसी चौरा :: १९
 


हैं। पैरिस से जेनिवा, रोम सभी स्थानों को रेल से ही जाया जा सकता है। बाबा के साथ मैं भी गयी थी। पता है काकू, वे लोग रोम को रोमा कहते हैं। अगला पृष्ठ! शर्मा जी की उँगलियाँ काँपने लगी। वेणु काका उन्हें उत्साहित करने लगे।

'पैरिस में जब मैं उससे सौंदर्य लहरी' की चर्चा कर रहा था, तो मुझसे जाने क्या-क्या सवाल करने लगी। पर मैं ठहरा निपट अनाड़ी। मैंने तो कह दिया कमली से, कि भई यह सब अपने भावी ससुर से पूछ लेना। वे संस्कृत के प्रकांड पंडित हैं।'

'क्यों? रवि ही बतला देता!' शर्मा जी की आवाज में कटुता थी।

वेणु काका हतोत्साहित नहीं हुए। शर्मा जी के मन की कटुता को करने की एक कोशिश और की।

'कमली की विनम्रता, सौम्यता, देखकर तो शक होता है कि क्या सचमुच वह इतने बड़े बाप की बेटी है। इतना प्यारा स्वभाव है उसका।'

शर्मा जी ने खटाक् से अलबम बन्द किया और उठ गये। 'मन ठीक नहीं है, किसी दिन फिर आऊँगा। कहकर चलने लगे। बसंती और काका ने उन्हें किसी तरह समझा बुझाकर बिठाया।

पंडित जी को लगा, इस मामले में रवि को वेणु काका और बसंती का पूरा सहयोग मिल रहा है।

उन्हें शान्त करने के लिए बातों का रुख बदलना जरूरी लगा। वेणु काका ने कहा, 'नहरिया के पास वाले नारियल के बाग को बटाई के लिए उठाया या नहीं! इस साल लगता है, नारियल, आम और कटहल की अच्छी उपज रहेगी।'

'न, अभी कहीं बात जमी नहीं। अच्छा आदमी नहीं मिला।, न हुआ कुछ तो सोचता हूँ, एक चौकीदार रख लूँगा और खुद काम देख लूँगा।'

'और ये मठ वाले खेत! इनका क्या करेंगे?'

'अब उसके लिए तो किसी से बात तय करनी ही होगी। खेती की