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तुलसी चौरा :: २५
 


पारदर्शी है सहज और सरल।'

'आप इतने निष्ठावान आस्तिक हैं और वह घोर तार्किक! आप उसकी इतनी तारीफ जो कर रहे हैं....।

'क्यों, क्या नास्तिक ईमानदार नहीं हो सकते?'

'हाँ, हाँ ठीक है। आप अपनी बात भूल गए और मैं भी बातों में उलझ गया। यह आस्तिक नास्तिक वाली चर्चा फिर कभी फुर्सत में करेंगे। फिलहाल हम अपनी असली बात पर आ जाएँ।

शर्मा जी वेणु काका के पास आकर धीमे से बोले, 'इस साहब- जादे ने जो गुल खिलाया है, मुझे तो लग रहा है, बिटिया के लिये कहीं भी बात तय करने में मुश्किल हो जाएगी। कुमार की तो कोई फिक्र नहीं। लड़का है। शादी में विलंब भी जाए तो कोई चिंता नहीं। उसकी पढ़ाई के दो साल अभी बाकी हैं। पर बेटी के लिये चिंता तो करनी होगी नं। एक परिवार में पुरुषों के द्वारा किये जाने वाली एक-एक गलती की सजा उस परिवार के स्त्रियों की ही तो भुगतनी पड़ती है? तिस पर जहाँ लड़कियाँ सयानी हों...।'

'आपने फिर वही बात उठा ली। देखिए! रवि ने ऐसा अनर्थ नहीं किया है, कि आपका परिवार ही बरबाद हो जाए। यह बीसवीं शताब्दी है। इस शताब्दी में, हवाई यात्रा, रेल यात्रा, चुनाव, प्रजातंत्र एवं समाजवाद की तरह प्यार करना भी उतनी ही आम बात हो गयी है।'

'पर काका, शंकरमंगलम जैसी जगह के लिये यह खास बात है। खासतौर पर हमारे खानदान में। अब तो लगता है, पारू की पढ़ाई अधूरी ही छुड़वा दूँ, और झटपट कहीं बात तय कर दुँ। इससे पहले की साहबजादे फिरंगिन के साथ यहाँ आकर नंगा नाच मचाएँ, इस लौंडिया को उसके घर भिजवा दूँ।'

'यह गुड्डे गुड़ियों का ब्याह तो है नहीं। जरा सी बच्ची है, उसकी पढ़ाई छुड़वा कर उसका ब्याह रचा देंगे आप? क्यों यार, मन में