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तुलसी चौरा :: ५३
 


लोग बगैर नहाए ही यहाँ पास पहुँच गये, तो अशुद्धि के भय से कह दिया था बस! और कोई बात नहीं। पर काकी के कुछ कहने के पहले, ही कमली ने मुझसे कहा था, कि अल्पना और दीये को देखकर लगता है, कि अभी-अभी पूजन किया गया है। न मैंने स्नान किया है, न तुमने। इसलिए दूर ही से देख लेते हैं। मैंने भी काकी से वहीं कह दिया। कमली बतला रही थी कि उसने यह सब बातें 'हिन्दू मैनर्स, कस्टम्स एंड सेरिमोनीज,' नामक पुस्तक में पढ़ रखा है।' रवि मुस्कुरा दिया। कमली भी उसे देखकर मुस्करा दी।

'कमली को बाग दिखा लाओ बसंती। चमेली के हार को देख कर उसकी महक के बारे में जाने कितनी बार कह चुकी है। वह 'जास्मीन' नाम के स्टेशन से परिचित हैं, बस! उसे चमेली के पौधे दिखा दो।'

वे लोग बाग की ओर चले गये। रवि चौके की ओर चला आया। चौके में जिस सीमा तक सबको प्रवेश मिलला रहा, उसी सीमा पर खड़ा रहा। 'अम्मा, मैं रवि आया हूँ।' उसने कुछ जोर से आवाज दी। कोई उत्तर नहीं मिला।

दुबारा उसने आवाज लगाई तो भीतर से आवाज आयी।

'जानती हूँ रे। वहीं ठहरों, भीतर मत चले आना! नहाये तो होगे नहीं अब तक। मैं ही आ रही हूँ उधर?'

अम्मा मथानी से दही मथ रही थी। अम्मा उस वक्त कैलेंडर वाली यशोदा लग रही थीं।

'तो मैं फिर आ जाऊँ? नहाकर आऊँ तो बात करोगी?'

'यहर, अभी आयी।'

'तुम मुझसे नाराज क्यों हो, अम्मा?'

'तो तुम नहीं जानते? मुझसे पूछ रहे हो?'

'मैंने ऐसा क्या कर दिया है?'

'तो और क्या बचा है?'

'अम्मा का सारा जोर 'और' 'शब्द पर था और रवि इसका वजन