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तुलसी चौरा :: ६१
 

कामाक्षी काकी; यानी कि तुम्हारी सासू और फुर्ती से फूल गूंथती हैं। रंगीली बनाना, फूल गूंथना, गिट्टियाँ खेलना, पल्लांगुषि खेलना, अम्मानै खेलना, कौड़ियाँ खेलना, खाना बनाना―काकी हर काम में माहिर हैं। गाना भी खूब गाती हैं। बसंती ने कहा।

'यह अम्मानै क्या है?' कमली ने पूछा।

बसंती ने पारू से वहफार पीतल की गोलियाँ मँगवाई। नीबू के आकार की गोलियों से खेला जाने वाला यह खेल, बसंती ठीक से खेल नहीं पाती थी। आदत जो नहीं थी। बसंती को उसी क्षण लगा कि वह खुद शहरी सभ्यता में अपनी जमीन से जुड़ी चीजों को भूलती जा रही है। तीन गोलियों को लगातार ऊपर फेंक एक हाथ से उन्हें लोक भी नहीं पायी।' तुम रुको कमली, मैं काकी को बुला लाती हूँ। वह तो पाँच गोलियाँ लगातार लोकती हैं। बसंती नीचे उतर गयी।

XXX
 

काकी चौके की चौखट के पास ही पटरे पर सिर रखे लेटी हुई थी। बसंती ने धीमे से झाँक कर देखा। कहीं सी तो नहीं गयी। न, जगी हुई थी।

'तूने अम्मानै सँगवाये थे! कुछ और चाहिये?' काकी स्वयं उठ बैठी।

थके हुए चेहरे में भी कितना तेज था! बसंती उन्हें देखती रही। मानो मह रही हो कि वह इस घर की गृह लक्ष्मी है, अन्न पूर्ण है। गंभीर तेज, तप से निखरा शरीर, ऋषि पत्नी की तरह लग रही थों वे।

बसंती को भय था, कहीं काकी निष्ठुरता से उसके प्रस्ताव को ठुकरा न दें।

'हमारी पारंपरिक कलाएँ, गीत, खेल, हमारे रीति रिवाजों को देखने समझने की खूब जिज्ञासा है कमली में! काकी, आप अम्मानै खेलकर दिखाएँगी? मुझसे तो बना नहीं।'