सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तुलसी चौरा :: ७९
 


पर तेल कैसे छूटेगा? चेहरे पर नहीं फैलेगा? कमली ने पूछा। ‘न! शैंपू से भी इतना साफ नहीं होगा, जितना इसमें होता है। तुम भी तेल लगा लो।’ कमली ने मना नहीं किया। ‘तेल लगाये बिना वहाँ चली गयी तो गले और कनपटी पर खून जम जाएगा।’ बसंती ने समझाया।

पहले वेणु काका, रवि और नायडू नहाकर निकले। कमली और बसंती का तो निकलने का मन ही नहीं हो रहा था।

देर हो गयी तो रवि और काका ने आवाज लगायी। बसंती ने ठीक कहा था, ‘बाल एकदम रेशम की तरह हो गए थे। कमली को आश्चर्य हुआ।

नायडू के सिर पर तेल का नाम निशान नहीं था। उनका गंजा सिर चमचमा रहा था काका ने छेड़ा, ‘क्यों नायडू, लगता है सिर कुछ नहीं रहा। एकदम खाली हो गया।’

'वाक्य ठीक नहीं बना, काकू। कुछ और मतलब निकलता है इसका।' रवि ने कहा।

'देखिये, मजाक छोड़िये। बाल झड़ना अनुभव के पकने का लक्षण है। गंजापन तो आपके भी बालों में है। आप भी जल्दी ही हमारी बिरादरी में शामिल हो जायेंगे हाँ......।'

'नायडू! अच्छा हुआ हमारे देश में बस एक यही दल तो नहीं बना है। पर लगता है, जल्दी ही एक दल ऐसा भी बन जायेगा।'

'तो इसमें गलत क्या है।'

'गलत तो कुछ भी नहीं है। जितनी जनसंख्या है अगर सभी एक एक दल बना डालें तो वोट डालने के लिये कौन बचेगा? एक-एक दल को एक-एक वोट मिलेगा। फिर हर व्यक्ति देश का नेता बन जाएगा। जनता तो रहेगी ही नहीं।'

वणु काका और नायडू जैसे युवा हो गए थे। युवतियों के कपड़े बदलने तक यह राजनीतिक चर्चा चलती रही।