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पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/९५

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तुलसी चौरा :: ९३
 


आते ही, एक सन्नाटा खिंच गया। पर एक अशांत कसमसार हवा में तैर गयी थी। शर्मा जी को देखकर ही कामाक्षी ने शुरू किया, 'अब आप ही बताइए, यह भी कोई बात हुई?'

शर्मा जी की समझ में आया कि जिस बात को वे सफाई से छिपा गए थे, उसका पता कामाक्षी को चला गया था।

कामाक्षी ने प्रत्यक्ष रूप से कमली को कुछ नहीं कहा, पर पारू पर जिस-जिस तरह उनका गुस्सा बरस रहा था प्रकारान्तर से कमली को प्रभावित कर रहा था। पारू को देखते ही कामाक्षी ने झिड़का था 'कहाँ मर गयी थी? संशवाती जलाने को कहा, तो क्या जवाब देते नहीं बनता। दीयाबाती के बाद घर से बाहर कहाँ निकल गयी थी?'

'मुझे क्या पता, तुमने कब कहा था! मैं तो बाहर से अब आ रही हूँ। मैंने न तुम्हारी बात सुनी न संझवाती की? पारु ने तेज आवाज में उत्तर दिया था। उसकी आवाज सुनकर कमली नीचे उतर आयी थी।

'आपने जब कहा था, तो पारू घर पर नहीं था, मैंने ही संझवाती की थी आज।' कमली की बात को पारु ने ऊँची आवाज में कामाक्षी तक पहुँचायी। कामाक्षी इस पर पार्वती पर बरसने लगी। पर बातें कमली को तकलीफ देने वाली ही कही गयी थीं।

'जहाँ घर की औरतें संज्ञवाती करती हैं, वहीं लक्ष्मी का बास होता है। आने जाने वालों दीयाबाती करते रहें और तू आवारागर्दी करती फिरे, क्यों?'

अम्मा की यह दो टूक बातें पार्वती को अच्छी नहीं लगीं। कमली के संवेदनशील मन को बात चुभ गयी। तभी शर्मा जी लौट आए। भाते ही वे बात समझ गए। जिस विवाद के समय से वे बात को छिपा गए थे, वहीं विवाद उठ खड़ा हुआ।

बेटे पर पूर्ण विश्वास के साथ समर्पित एक युवती हजारों मील दूर-एक पराये देश में आयी है। कामाक्षी ने उसे आहत कर दिया। शर्मा जी को बेहद दुख हुआ।