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२. माया

(लन्दन में दिया हुआ भाषण)

माया शब्द प्रायः आप सभी ने सुना होगा। इसका व्यवहार साधारणतः कल्पना, कुहक अथवा इसी प्रकार के किसी अर्थ में किया जाता है, किन्तु यह इसका वास्तविक अर्थ नहीं है। मायावाद रूप एक स्तम्भ पर वेदान्त की स्थापना हुई है, अतः उसका ठीक ठीक अर्थ समझ लेना आवश्यक है। मैं तुमसे तनिक धैर्य की अपेक्षा रखता हूँ, क्योंकि मुझे बड़ा भय है कि कहीं तुम उसे (माया के सिद्धान्त को) ग़लत न समझ लो।

वैदिक साहित्य में कुहक अर्थ में ही माया शब्द का प्रयोग देखा जाता है। यही माया शब्द का सबसे प्राचीन अर्थ है। किन्तु उस समय वास्तविक मायावाद-तत्त्व का उदय नहीं हुआ था। हम वेद में इस प्रकार का वाक्य देखते हैं―"इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते," अर्थात् इन्द्र ने माया द्वारा नाना रूप धारण किये। यहाँ पर माया शब्द इन्द्रजाल अथवा उसी के समान अर्थ में व्यवहृत हुआ है। वेदों के अनेक स्थलों में माया शब्द इसी अर्थ में व्यवहृत हुआ देखा जाता है। इसके बाद कुछ काल तक माया शब्द का व्यवहार एकदम लुप्त हो गया। किन्तु इसी बीच तत्प्रतिपाद्य जो अर्थ या भाव था वह क्रमशः परिपुष्ट हो रहा था। इसके बाद के समय में एक प्रश्न देखा