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जगत्

गिरा तो मनुष्य को असंतोष हुआ। इसके बाद मनुष्य ने क्रमश इसी प्रकार की कई घटनाएँ देखी। शृंखला की तरह ये घटनाएँ एक दूसरे से बंधी हुई थी। यह शृंखला क्या थी? वह शृंखला यह थी कि सभी सेव गिरते है। और इसीको उसने 'माध्याकर्षण' का नाम दिया। अतएव हमने देखा कि पहले की अनुभूतियाँ न रहने से कोई नई अनुभूति प्राप्त करना असभव है, क्योकि उस नयी अनुभूति से तुलना करने के लिये कुछ भी नहीं मिल सकेगा। इसलिये कई यूरोपीयन दार्शनिको का जो मत है कि 'पैदा होते समय बच्चा संसारशून्य मन लेकर आता है' यदि सच हो तो संसार से उसे संस्कारशून्य मन लेकर जाना पड़ेगा क्योंकि नयी अनुभूति के साथ मिलने के लिये उसने कोई संस्कार ही नहीं हैं। अतएव हमने देखा कि इस पूर्वसंचित ज्ञान- भाडार के बिना कोई नया ज्ञान प्राप्त करना असंभव है। वस्तुत हम सभी को पूर्वसचित ज्ञान-मांडार अपने साथ लेकर आना पड़ा है। ऐसे ज्ञान के बिना जानने का और कोई दूसरा उपाय नहीं है। यदि हमे यहाँ पर वह ज्ञान नहीं मिला हो तो अवश्य ही हमने अन्य कही से उसे प्राप्त किया होगा। मृत्यु से हम सर्वदा डर जाते है, लेकिन क्यों? मुर्गी का एक बच्चा जो अभी पैदा हुआ है, एक चील को आते देखकर भाग गया। उसने कहाँ से तथा कैसे सीखा कि चील मुर्गी के बच्चों को खा जाती है। इसका एक पुराना विश्लेषण है, किन्तु उसे हम सिर्फ विश्लेषण ही नहीं कह सकते। वह स्वाभाविक संस्कार (Instinct) कहा जाता है। मुर्गी के उस छोटे बच्चे में कहा से मरने का डर आया? अंडे से अभी अभी निकली वदक पानी के निकट आते ही क्यो कूद पड़ती है तथा तैरने लगती है? वह तो पहले कभी तैरना नहीं जानती थी, न तो पहले उसने किसीको तैरते