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पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/२२०

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ज्ञानयोग


समय आपकी सन्तान का जन्म भी यद्यपि ऊपर ऊपर आपको मगल सा लग रहा है किन्तु वास्तव मे मेरी दृष्टि से यह महा अमंगलकारी मालूम होता है। इसी प्रकार जगत् के दुःख-अमगल को ढक रखना ही क्या जगत् का दुःख दूर करने का उपाय हो सकता है? स्वयं अच्छे वनो और जो कष्ट पा रहे है उनके ऊपर दया करो। जोड जाड करके रखने की चेष्टा मत करो, उससे भवरोग दूर नही होगा। वास्तव मे हमे जगत् के बाहर जाना पडेगा।

यह जगत् सदा ही भले और बुरे का मिश्रण है। जहाॅ भलाई देखो, समझ लो कि उसके पीछे बुराई भी छिपी है। किन्तु इन सभी व्यक्त भावों के पीछे--इन सब विरोधी भावो के पीछे वेदान्त उसी एकत्व को देखता है। वेदान्त कहता है, बुराई छोडो, और भलाई भी छोडो। ऐसा होने पर शेष क्या रहा? वेदान्त कहता है कि केवल अच्छे बुरे का ही अस्तित्व है यह बात नही। इनके पीछे एक ऐसी वस्तु रहती है जो वास्तव मे तुम्हारी है, जो वास्तव मे तुम्हीं हो, जो सब प्रकार के शुभ और सब प्रकार के अशुभ के बाहर है। वही वस्तु शुभ और अशुभ रूप मे प्रकाशित हो रही है। पहले इसको जान ली-तभी, और केवल तभी तुम पूर्ण सुखवादी हो सकते हो। इसके पूर्व नहीं। ऐसा होने पर ही तुम सभी पर विजय प्राप्त कर सकते हो। इन्ही आपातप्रतीयमान व्यक्त भावो को अपने आधीन करो, तब तुम उस सत्य वस्तु को इच्छानुसार जैसा चाहो प्रकाशित कर सकोगे। तभी तुम उन्हे चाहे शुभ रूप मे, चाहे अशुभ रूप मे जैसी इच्छा हो प्रकाशित कर सकोगे। किन्तु पहले तुम्हे स्वय अपना ही प्रभु बनना पड़ेगा। उठो, अपने को मुक्त करो, इस समस्त