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बहुत्व में एकत्व

किस प्रकार भूमि पर गिरता है अथवा विद्युत का प्रवाह किस प्रकार स्नायुओ को उत्तेजित करता है तब तो मैं इसी क्षण आत्महत्या कर लूँ। मेरा संकल्प है कि मैं सभी वस्तुओ के मर्म की खोज करूँगा और जीवन का वास्तविक रहस्य क्या है यह जानूँगा। आप प्राण के विभिन्न विकासो की आलोचना कीजिये, मैं तो प्राण का स्वरूप जानना चाहता हूँ। मैं इस जीवन का समस्त रस सोख लेना चाहता हूँ। मेरा दर्शन कहता है कि जगत् और जीवन का समस्त रहस्य जानना होगा, स्वर्ग नरक आदि का सभी कुसंस्कार छोड़ देना होगा, चाहे उनकी सत्ता ठीक इसी पृथ्वी के समान क्यो न हो। मैं इस आत्मा की अन्तरात्मा को जानूँगा—उसका वास्तविक स्वरूप जानूँगा, वह क्या है, यह जानूँगा, केवल वह किस प्रकार कार्य करता है एवं उसका प्रकाश क्या है यह जान कर ही मेरी तृप्ति नहीं होगी। सभी वस्तुओ का 'क्यो' जानना चाहता हूँ-'कैसे होती है,' यह खोज बालक करते रहे। विज्ञान और क्या है? आपके ही किसी बड़े आदमी ने कहा है-'सिगरेट पीते समय जो जो होता है वही यदि मैं लिख कर रक्खूँ तो वही सिगरेट का विज्ञान होगा।' अवश्य ही वैज्ञानिक होना अच्छा है और गौरव की बात है―ईश्वर उनके अनुसन्धान में सहायता और आशीर्वाद दे; किन्तु जब कोई कहता है कि यह विज्ञान-चर्चा ही सर्वस्व है, इसके अतिरिक्त जीवन का और कोई उद्देश्य नहीं है, तब समझ लेना चाहिये कि वह निर्वोध के समान बात कह रहा है। समझ लो कि उसने जीवन के मूल रहस्य को जानने की कभी चेष्टा नहीं की; वास्तविकता क्या है, इसकी उसने कभी आलोचना ही नहीं की। मैं यो ही केवल तर्क के द्वारा ही समझा दे सकता हूँ कि तुम्हारा जो कुछ भी ज्ञान है सब

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