पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३४
ज्ञानयोग

प्रकार सभी वस्तुओं में, जीवन में, मरण में, सुख में, दुःख में-सभी अवस्थाओं में समस्त जगत् ईश्वर से पूर्ण है। केवल आँखे खोल कर उसका दर्शन करो। वेदान्त यही कहता है; तुम जगत् को जिस रूप में अनुमान करते हो उसे छोड़ो, कारण तुम्हारा अनुमान अत्यन्त कम अनुभूति के ऊपर-बिलकुल सामान्य युक्ति के ऊपर-स्पष्ट शब्दों में, तुम्हारी अपनी दुर्बलता के ऊपर स्थापित है। यह आनुमानिक ज्ञान छोड़ो―हम इतने दिन जगत् को जिस रूप में समझते थे, इतने दिन जिसमे अत्यन्त आसक्त थे वह हमारे द्वारा ही सृष्ट मिथ्या जगत् मात्र है। इसको छोड़ो। आँखे खोल कर देखो, हम अब तक जिस रूप में जगत् को देखते थे, वास्तव में उसका अस्तित्व वैसा कभी नहीं था― हम स्वप्न में इस प्रकार देखते थे—माया से आच्छन्न होने के कारण यह भ्रम हमे होता था। अनन्त काल से लेकर वे ही एक मात्र प्रभु विद्यमान थे। वे ही सन्तान के भीतर, वे ही स्त्री में, वे ही स्वामी में, वे ही अच्छे में, वे ही बुरे में, वे ही पाप में, वे ही पापी में, वे ही हत्याकारी में, वे ही जीवन में एवं वे ही मरण में वर्तमान है।

प्रस्ताव तो अवश्य कठिन है।

किन्तु वेदान्त इसी को प्रमाणित करना, शिक्षा देना और प्रचार करना चाहता है। यही विषय लेकर वेदान्त का आरम्भ होता है।

हम इसी प्रकार सर्वत्र ब्रह्म-दर्शन करके जीवन की विपत्तियो और दुःखो को हटा सकते है। कुछ इच्छा मत करो। कौन हमे दुःखी करता है? हम जो कुछ भी दुःख भोग करते है, वासना से ही उसकी उत्पत्ति होती है। तुम्हे कुछ अभाव है, वह पूरा नहीं होता, फल दुःख। अभाव यदि न रहे तो दुख भी नहीं होगा। जब हम सब