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ज्ञानयोग


तब सभी विषयों का वास्तविक सम्भोग कर पाओगे, किन्तु जैसे ही हम संसारेक्षत्र मे उतर कर कुछ धक्के खाते है वैसे ही हमारी सब ब्रह्मवुद्धि उड़ जाती है। मै मार्ग मे सोचता जा रहा हूॅ, सभी मनुष्यो मे ईश्वर विराजमान है--एक बलवान् मनुष्य ने आकर मुझे धक्का दिया, बस मै चित होकर गिर पडा। झठ उठा, रक्त मस्तक में चढ़ गया--मुट्ठी बँध गई--विचारशक्ति नष्ट होगई। बिलकुल उन्मत्त हो उठा, स्मृति लुप्त हो गई--उस व्यक्ति के अन्दर ईश्वर को न देखकर मैने भूत देखा। जन्म के साथ ही साथ उपदेश मिलता है, सर्वत्र ईश्वरदर्शन करो, सभी धर्म यही सिखाते है--सभी वस्तुओ मे, सब प्राणियों के अन्दर, सर्वत्र ईश्वरदर्शन करो। न्यू टेस्टामेण्ट मे ईसामसीह ने भी इस विषय मे स्पष्ट उपदेश दिया है। हम सभी ने यह उपदेश पाया है--किन्तु काम के समय ही हमारा गोलमाल प्रारम्भ हो जाता है। ईसप् की कहानियों में एक कथा है। एक विशालकाय सुन्दर हरिण तालाब में अपना प्रतिबिम्ब देखकर अपने बच्चे से कहने लगा, "देखो, मै कितना बलवान हूॅ, मेरा मस्तक देखो कैसा भव्य है, मेरे हाथ पॉच देखो कैसे दृढ़ और मांसल है, मै कितना तेज दौड़ सकता हूॅ।" यह बात कहते ही उसने दूर से कुत्तो के भौकने का शब्द सुना।सुनते ही वह ज़ोर से भागा। बहुत दूर दौडने के बाद हॉफते हाँफते फिर बच्चे के पास आया। बच्चा बोला, 'अभी तो तुम कह रहे थे, मैं बडा बलवान् हूॅ, फिर कुत्तो का शब्द सुनकर भागे क्यों?' हरिण बोला--'यही तो बात है, कुत्तो की भों भो सुनकर ही मेरा सब ज्ञान लुप्त हो जाता है।' हम लोग भी जीवन भर यही करते रहते है। हम इस दुर्बल मनुष्य जाति के सम्बन्ध मे कितनी आशाये बॉधते रहते है, किन्तु कुत्तों के भौकते ही हरिण की भाॅति भाग खड़े होते हैं! यदि