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पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/३१७

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अमरत्व

और सभी रूप नित्य हैं। मान लो कि मैं पासा खेल रहा हूँ। मान लो कि ६–५–३–४ आये। मैं और खेलने लगा। खेलते खेलते एक समय ऐसा अवश्य आयेगा जब ये ६–५–३–४ इसी क्रम से आयेंगे। और खेलो, फिर ये आयेंगे किन्तु देर में। मैं जगत् के प्रत्येक परमाणु की एक एक पासे से तुलना करता हूँ। उन्हीं को बार बार फेंका जा रहा है, और वे बार बार नाना प्रकार से गिरते हैं। आपके सम्मुख जो समस्त पदार्थ हैं वे सब परमाणुओं के एक विशिष्ट प्रकार के सन्निवेश से उत्पन्न हैं। यह गिलास, यह मेज, यह जलघट, ये सभी वस्तुयें परमाणुओं का समवायविशेष है—क्षण भर के बाद शायद यह समुदायविशेष नष्ट हो जा सकता है। किन्तु एक समय ऐसा अवश्य आयेगा जब ठीक यही समवाय आकर उपस्थित होगा—जब आप सब इसी तरह बैठे होंगे और यह जलघट अथवा अन्य वस्तुयें जो कुछ भी हैं सभी यथास्थान रहेंगी और ठीक इसी विषय की आलोचना होगी। अनन्त बार इसी प्रकार हुआ है और अनन्त बार इसी प्रकार होगा। यहाँ तक हमने स्थूल जगत् की—बाह्य वस्तुओं की आलोचना की। हमने क्या देखा? यही कि इन भौतिक पदार्थसमूहों की विभिन्न समवाय में पुनरावृत्ति अनन्त काल तक होती रहती है।

इसके साथ ही साथ और एक प्रश्न उठ खड़ा होता है—भविष्य को जानना सम्भव है या नहीं। आप लोगों ने शायद ऐसे आदमी को देखा है जो मनुष्य के अतीत व भविष्य की सारी बातें बतला देता है। यदि भविष्य किसी नियम के अधीन न हो तो किस प्रकार भविष्य के सम्बन्ध में हम कह सकते हैं? परन्तु हमने पहले ही देखा है कि भविष्य में बीती घटनाओं की ही पुनरावृत्ति होती है। जो भी हो