महिमाशाली राजाओं के राजा आत्मा को प्रदान करती है। आत्मा उन्हें देख कर जो आवश्यक है वह आदेश करता है। उसके बाद मन इन्हीं मस्तिष्क केन्द्रों अर्थात् इन्द्रियों के ऊपर कार्य करता है और फिर वे स्थूल शरीर के ऊपर कार्य करती हैं। मनुष्य का आत्मा ही इन सब का वास्तविक अनुभवकर्ता, शास्ता, स्रष्टा, सब कुछ है। हमने देखा कि आत्मा शरीर भी नहीं है, मन भी नहीं। आत्मा कोई यौगिक पदार्थ (Compound) भी नहीं हो सकता। क्यों? कारण, जो कुछ भी यौगिक पदार्थ है वही हमारे दर्शन या कल्पना का विषय होता है। जिस विषय का हम दर्शन या कल्पना कुछ भी नहीं कर सकते, जिसे हम पकड़ नहीं सकते, जो न भूत है, न शक्ति, जो कार्य, कारण अथवा कार्य-कारण-सम्बन्ध कुछ भी नहीं है, वह यौगिक अथवा मिश्र नहीं हो सकता। अन्तर्जगत् पर्यन्त ही मिश्रित पदार्थ का अधिकार है—उसके बाहर और नहीं। सभी मिश्रित पदार्थ नियम के राज्य के अन्दर हैं—नियम के राज्य के बाहर वे रह ही नहीं सकते। इसको और भी स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है। यह गिलास एक योग से उत्पन्न पदार्थ है—अपने कारणों के मिलन से ही यह कार्यरूप में परिणत हुआ है। अतः इन कारणों की समष्टि रूप गिलास नामक यौगिक पदार्थ कार्य-कारण के नियम के अन्तर्गत है। इसी प्रकार जहाँ जहाँ कार्य-कारण-सम्बन्ध देखा जायगा वहाँ वहाँ यौगिक पदार्थों का अस्तित्व स्वीकार करना पड़ेगा। इसके बाहर उसके अस्तित्व की बात कहना कोरा पागलपन है।—इनके बाहर कार्य-कारण-सम्बन्ध रह ही नहीं सकता। हम जिस जगत् के सम्बन्ध में चिन्ता अथवा कल्पना कर सकते हैं अथवा जो देख या सुन सकते हैं उसी के भीतर नियम कार्य कर सकता है। हम यह भी देखते हैं कि अपनी इन्द्रियों के द्वारा जो
पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/३२३
दिखावट