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ज्ञानयोग

की चेष्टा की है किन्तु कोई भी कृतकार्य न हो सका। यद्यपि दोष को धीरे धीरे कम करते हुए किसी अंश में रोका भी जा सकता है किन्तु दूसरे किसी अंश में ढेर का ढेर अशुभ सञ्चित होता रहता है। इसकी गति ही ऐसी है। हिन्दुओं ने जाति के जीवन में किसी प्रकार सतीत्व धर्म को उत्पन्न करने के लिये अपनी सन्तान को तथा धीरे धीरे समस्त जाति को बालविवाह के द्वारा अधोगामी कर दिया है। किन्तु यह बात भी मैं अस्वीकार नहीं कर सकता कि बालविवाह ने हिन्दू जाति को सतीत्व धर्म से विभूषित किया है। तुम चाहते क्या हो? यदि जाति को सतीत्वधर्म से थोड़ा बहुत विभूषित करना चाहते हो तो इसी भयानक बाल्यविवाह द्वारा समस्त स्त्रीपुरुषों को शारीरिक विषय में अधोगामी करना पड़ेगा। दूसरी ओर क्या तुम्हारी जाति विषत्तियो से रहित है? कभी नहीं। कारण, सतीत्व ही जाति की जीवनी शक्ति है। क्या आप ने इतिहास में नहीं पढ़ा है कि जातियो की मृत्यु का चिन्ह असतीत्व के भीतर से ही आता है―जब यह किसी जाति के भीतर प्रवेश करता है तभी उसका विनाश निकट पहुँचता है। इन सब दुःखजनक प्रश्नों की मीमांसा कहाँ मिलेगी? यदि माता-पिता अपनी सन्तान के लिये पात्र या पात्री का निर्वाचन करे तब इस तथाकथित प्रेम के दोष का निवारण हो सकता है। भारत को बेटियाँ भावुक होने की अपेक्षा कार्यकुशल अधिक होती है। उनके जीवन में कल्पनाप्रियता को अधिक स्थान नहीं मिलता। किन्तु यदि लोग अपने आप ही स्वामी और स्त्री का निर्वाचन करते है तब उन्हें इससे अधिक सुख नहीं मिलता। भारतीय नारियाँ अधिक सुखी है। स्त्री और स्वामी के बीच कलह अधिकांश नहीं होता। दूसरी ओर अमेरिका में जहाँ स्वाधीनता की अधिकता है वहाँ सुखी