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ज्ञानयोग


करूँगा? मै उस यन्त्र से नाना प्रकार की प्रकाश-किरणें इस पर्दे पर डालने की और उन्हे एक स्थान में एकत्रित करने की चेष्टा करूँगा। एक ऐसी अचल वस्तु की आवश्यकता है जिस पर चित्र डाला जा सके। किसी चञ्चल वस्तु पर यह करना असम्भव है, कोई स्थिर वस्तु चाहिये। कारण, मै जो प्रकाश-किरणे डालना चाहता हूँ वे चञ्चल है; इन चञ्चल प्रकाश-किरणों को किसी अचल वस्तु के ऊपर एकत्रीभूत, एकीभूत करके एक जगह लाना होगा। यही बात उन संवादों के विषय मे भी है जिन्हें इन्द्रियाॅ मन के आगे और मन बुद्धि के आगे समर्पित करता है, जब तक ऐसी कोई वस्तु नहीं मिल जाती जिस पर यह चित्र डाला जा सके, जिस पर भिन्न भिन्न भाव एकत्रीभूत हो कर मिल सके तब तक यह विषयानुभूति भी पूर्ण नही होगी। वह क्या वस्तु है जो समुदय को एकत्व का भाव प्रदान करती है। वह कौनसी वस्तु है जो विभिन्न गतियो के भीतर भी प्रतिक्षण एकत्व की रक्षा किये रहती है? वह कौन सी वस्तु है जिसके ऊपर भिन्न भिन्न भाव मानो एक ही जगह गूॅथे रहते है, जिसके ऊपर विषय आकर मानो एक जगह वास करते है और एक अखण्ड भाव को धारण करते है? हमने देखा कि ऐसी कोई वस्तु आवश्यक है और उस वस्तु का शरीर और मन की तुलना मे अचल होना भी आवश्यक है। जिस पर्दे के ऊपर यह चित्रक्षेपक यन्त्र चित्र डाल रहा है वह इन प्रकाश-किरणो की तुलना मे अचल है, ऐसा न होने पर चित्र पडेगा ही नहीं। अर्थात् इसका एक व्यक्ति (Individual) होना आवश्यक है। यही वस्तु, जिसके ऊपर मन यह सब चित्रांकन करता है, यही वस्तु जिसके ऊपर मन और बुद्धि द्वारा ले जायी