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यह गली बिकाऊ नहीं/141
 


थलग पड़े रहे। किसी की आँखों में नहीं पड़े। यह देखकर मेरा दिल कुढ़ता रहा था। उसका फल अभी मिला है। अब्दुल्ला और गोपाल ने पिनांग में आपके दिल को कैसी-कैसी चोटें पहुँचायी थीं ! आज आप ही को उनका मान रखना पड़ रहा है, इक्जत बचानी पड़ रही है।"

"बस, बस ! बंद करो ! तुम्हारी ये बातें मुझे मिथ्याभिनान से भर देंगी।

"अच्छा ! कल अब्दुल्ला आपसे अकेले में मिलना चाहते थे, सो किसलिए?"

" 'समय पर आपने हमारी नाक रख ली। पुरानी बातें मन में न रखिए।'

कहकर उन्होंने हीरे की एक अंगूठी भी बढ़ायी। मैंने उत्तर दिया, 'साहब ! आपके लिए मैंने कुछ नहीं किया। मैंने अपने दोस्त की इज्जत रखने को अपना कर्तव्य समझा ! आप जो कुछ देना चाहते हैं, गोपाल को दीजिए ! मेरा आपसे कोई वास्ता नहीं !' इतना कहकर मैंने अंगूठी लेने से इनकार कर दिया ।"

"बहुत अच्छा किया ! सबने आपका दिल कितना दुखाया? अंग्रेजी नहीं जानने पर आपकी खिल्ली भी उडावी.!"

"कोई कुछ जाने या न जाने, मनुष्य की श्रेष्ठ भाषा तभी बोली जाती है, जब दूसरों के साथ उदारता का व्यवहार किया जाता है। अगर वह भाषा मालूम हो तो काफ़ी है। उस भाषा से अपरिचित रहनेवाला चाहे जितनी ही भाषाएँ क्यों न जाने, कोई फायदा नहीं है। दुःख के समय जहाँ आँसू की दो बूंदें टपकती हैं और सुख के समय जहाँ एक मुस्कान खिल उठती है, वही समस्त भाषाएँ जाननेवाला हृदय है। उससे बढ़कर श्रेष्ठ भाषा कोई नहीं !"

डॉक्टर का आदेश था कि गोपाल को एक हप्ता और आराम चाहिए । इससे 'मलाका. में होनेवाले नाटकों की भूमिका भी मुत्तुकुमरन के जिम्मे आयी। 'मुत्तुकुमरन् और नाटक-मंडली वाले कार ही में मलाका के लिए रवाना हुए। गोपाल की देख-रेख का भार रुद्रपति रेड्डियार के सुपुर्द किया गया।

मलाका में रुकते हुए एक दिन दोपहर को वे पोर्ट डिक्सन समद्र तट की सैर को भी निकल गये । मलाका में भी नाटकों के प्रदर्शन के लिए अच्छी-खासी वसूली हुई।

मुत्तुकुमरन् का अभिनय दिन-प्रतिदिन निखरता गया। मंडली के नामार्जन का वह एकमात्र कारण था। मलाका में नाटक पूरे होने पर, लौटते हुए रास्ते में चिरंपान में एक मित्र के यहाँ उन्हें भोज के लिए आमंत्रित किया गया। भोजन के उपरांत मेजबान के हाथों अब्दुल्ला ने मुत्तुकुमरन को वही अंगूठी दिलाने की कोशिश भी की। मुत्तुकुमरन् ने इसका उद्देश्य भांप लिया। अब्दुल्ला ने देखा कि मुतुकुमरन् उसके हाथों यह उपहार इनकार कर रहा है तो घुमा-फिराकर चिरपान के दोस्त के हाथों; उसके हाथ किसी तरह पहुँचा देने का उपक्रम किया। इस रहस्य को जानते हुए भी मुत्तुकुमरन् ने चार जनों के सामने उनका अपमान नहीं करना