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यह गली बिकाऊ नहीं/143
 


है ? नाहक एक बड़े आदमी का दिल दुखाने से तुम्हारे विचार से तुम्हारा कौन-सा फायदा होनेवाला है ?"

"ओ हो ! यह बात है ! कोई बड़ा मनुष्य हमारा अपमान करे तो चुप रहना चाहिए ! किसी बड़े आदमी का विरोध मोल नहीं लेना चाहिए ! तुम यही कहना चाहते हो न?'

"मान लो कि अब्दुल्ला ने तुम्हारा अपमान किया तो भी..."

"छि: ! छिः ! दुबारा ऐसी बात मुंह में न लाओ। मेरा अपमान वह क्या, उसके दादे-परदादे भी नहीं कर सकते। ऐसा समझकर, मानो मेरा बड़ा अपमान कर रहे हैं, कुछ दिलासा दे दिया, बस !"

"जो भी हो, इतना रोष तुम्हें नहीं सोहता उस्ताद !"

"वही एक चीज़ है, जो कलाकार के पास बची-खुची रहती है । उसे भी छोड़ दूं तो फिर कैसे ..?"

"अब्दुल्ला ने मेरे पास आकर कहा कि मैं किसी तरह तुम्हें उनकी वह अंगूठी लेने को बाध्य करूं।"

"वह तो मैंने उन्हीं से कह दिया कि आप जो भी देना चाहें, गोपाल को दे दीजिए। आपका और मेरा कोई सीधा संबंध नहीं। उन्होंने तुमसे नहीं कहा क्या ?" !"कहा था। कहकर वह अंगूठी मेरे हाथ दे गये हैं।"

"अच्छा!"

"तुम्हारे विचार से अब्दुल्ला की अंगूठी लेना ठीक नहीं । पर रुद्रपति रेड्डियार की घड़ी लेना ठीक है। है न सही बात?".

"रुद्रप्प रेड्डियार और अब्दुल्ला कभी एक से नहो पायेंगे। रेड्डियार आज करोड़पति हो गये हैं । पर मेरे साथ बिना किसी भेद-भाव के सलूक करते हैं । पैसे का गर्व उन्हें छू तक नहीं गया है।"

गोपाल इसका कोई जवाब नहीं दे सका । बोला, "तुमसे बात करने से कोई फायदा नहीं, ठीक है।"

मुत्तुकुमरन ने क्वालालंपुर में और दो नाटक खेले। इतने में गोपाल उठकर चलने-फिरने लगा था। दूसरे दिन का नाटक गोपाल ने भी पहली कतार में बैठकर देखा। उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही। मुत्तुकुमरन का अभिनय देखकर उसने दांतों तले उंगली दबा ली।

नाटक खत्म होने पर गोपाल ने मुत्तुकुमरन के गले लगकर उसकी बड़ी तारीफ़ की। दूसरे दिन उन्होंने रेडियो और दूरदर्शन पर एक भेंट-वाता भी दी। उस भेंट-वार्ता में भाग लेने के लिए मुत्तकुमरन्, गोपाल और माधवी तीनों साथ गये थे । तीसरा दिन नगर-भ्रमण और दोस्तों से विदा लेने में बीता। जिस दिन वे लोग वहाँ से रवाना हुए, उस दिन मेरीलिन होटल में गोपाल की नाटक-मंडली की