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144/ यह गली बिकाऊ नहीं
 


एक विदाई-दावत दी गयी । उसमें बोलनेवाले सभी ने मुत्तुकुमरन की बड़ी तारीफ़ की। गोपाल ने कृतज्ञता-ज्ञापन में मुतुकुमरन् की भरपूर प्रशंसा की। इस कार्य में वह अघाया नहीं। माधवी ने अपनी मंडली की तरफ़ से एक गीत गाया-'आओ, आओ ! मेरे नूरे चश्म !' प्रथम चरण गाते हुए माधवी की आँखों ने प्रथम पंक्ति में बैठे मुत्तुकुमरन को ही अपनी दृष्टि का बिन्दु बनाया।

हमेशा की तरह यह समस्या उठ खड़ी हुई कि कौन-कौन हवाई जहाज़ पर सिंगापुर जायेंगे ? मुत्तुकुमरन् और माधवी ने पहले की तरह ही इनकार कर दिया। "तो मैं भी प्लेन पर नहीं जाता। तुम लोगों के साथ कार ही में जाऊँगा !"

कहकर गोपाल ने हठ ठाना ।

पैर ठीक होने पर भी वह कुछ कमज़ोर-सा बना रहा । उसके लिए दो सौ मील से अधिक की कार-यात्रा कष्टदायक हो सकती थी। अतः मुत्तुकुमरन् ने उस पर जोर देते हुए कहा---

"इस देश और इस देश की प्राकृतिक सुषमा को देखने के विचार से हम दोनों कार में आने की बात सोच रहे हैं। इसे तुम्हें अन्यथा नहीं लेना चाहिए ! तुम्हारी हालत अब भी कार-यात्रा के लायक नहीं है । इसलिए मेरी बात मानो !” मुत्तुकुमरन् के आग्रह करने पर गोपाल मान गया ।

उदयरेखा के प्रति अब्दुल्ला का मोह अभी उतरा नहीं था और उतरने का नाम भी नहीं लेता था। अत: बे तीनों मलेशियन एयरवेंज' के हवाई जहाज पर सिंगापुर को रवाना हुए। मुत्तुकुमरन् सहित बाकी सब लोग कार द्वारा जोगूर के रास्ते सिंगापुर के लिए रवाना हुए। रुद्रपति रेड्डियार ने उनके लिए दोपहर का भोजन टिफ़िनदानों में भिजवा दिया था। रास्ते में एक जंगली नाले के किनारे कारें खड़ी कर सबने दोपहर का भोजन किया। सफ़र बड़े मजे का रहा । जोगूर का पुल पार करते हुए शाम के साढ़े छः बज गये। शाम के झुटपुटे में सिंगापुर नगर बड़ा रमणीक लग रहा था। सर्द मौसम और अंधेरे के डर से कोई अनिन्द्य सुन्दरी लुक-छिपकर चहलकदमी करें तो कैसा रहे ? सिंगापुर नगर उस समय ऐसी ही स्थिति उत्पन्न कर रहा था। उनकी कारों के, पुक्किट डिमा रोड पार कर, पेनकुलिन सड़क पर स्थित एक होटल में पहुंचते-पहुँचते गाढ़ा अँधेरा हो चला था। जहाँ देखो, आसमान से बातें करनेवाली बहुमंजिली इमारतें कतारों में खड़ी थी;:: जो गत्ते के बने हुए मॉडलों से लगीं। सिंगापुर क्वालालम्पुर से भी ज्यादा चुस्त और गतिशील लगा। कारें सड़कों पर चींटी की तरह रेंग रही थीं। पीले रंग से पुती छतवाली टैक्सियाँ बड़ी तेज गति से बढ़ रही थीं। रात के भोजन के लिए सभी चिरंगून रोड स्थित 'कोमल विलास' नामक शाकाहारी भोजनालय को गये ।

इस बार गोपाल भी उनके साथ ठहर गया। उदय रेखा और अब्दुल्ला कांटिनेंटल होटल में ठहरे। सिंगापुर के नाटकों में गोपाल ने ही भूमिका की । सिंगापुर के