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24/यह गली बिकाऊ नहीं
 


"ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह माधवी ही कद-काठी से नाक-नश से तराशी हुई बहुत सुन्दर युवती थी !"

"अच्छा!"

"उसे 'पर्मानेंट हीरोइन' बना लेना है !"

"नाटक के ही लिए न?"

"उस्ताद ! तुम्हारा मज़ाक मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता ! रहने भी दो !"

"अच्छा रहने दिया ! आगे बोलो!" मुत्तुकुमरन् ने कहा।

गोपाल बोला, "आयी हुई लड़कियों में से कुछेक को नाटक के उपपात्रों के लिए लेना चाहता हूँ !"

. “यानी ऐतिहासिक कहानी हो तो सखी और बाँदी; सामाजिक कहानी हो तो कॉलेज की सहेली, पड़ोस की लड़की-~-यही न ? जरूर-जरूरत पड़ेगी ! समय- समय पर जीवन-साथी के बतौर भी काम आ सकती है !"

मजाक बर्दाश्त न कर सका तो गोपाल ने चुप्पी साध ली और मुत्तुकुमरन् पर पनी दृष्टि फेंकी । मुत्तुकुसरन् ने तत्काल बात बदलकर हँसते हुए पूछा, 'गोपाल नाटक मंडली नाम रखने से पहले, तुम कह रहे थे कि सेक्रेटरी से मिलकर आय- कर आदि के विषय में कुछ पूछना है । पूछ लिया क्या ?"

गोपाल ने कहा, "सुबह ही सेक्रेटरी को फोन कर मालूम भी कर चुका। हम गोपाल नाटक मंडली नाम रख सकते हैं । सेक्रेटरी की सलाह के बाद ही तुम्हारे पास आया हूँ !"

"अच्छा, बोलो ! आगे क्या करना है ?"

"इस 'आउट हाउस में सभी सुविधाएं हैं। यहाँ बैठकर जल्द-से-जल्द उस्ताद को नाटक लिखकर तैयार कर देना है, बस । अगर किसी चीज़ की जरूरत हो तो नायर छोकरे को आवाज़ दो । उत्तर के सुपर स्टार दिलीप कुमार जब यहाँ आये थे, उनके ठहरने के लिए ही यह 'आउट हाउस' खासकर बनवाया था। उनके बाद यहाँ ठहरने वाले पहले आदमी तुम्ही हो !"

"तुम्हारा ख्याल यही है न कि उस्ताद की इससे बड़ी अवहेलना नहीं की जा सकती!"

"इसमें अवहेलना कैसी?"

"दिलीप कुमार एक अभिनेता है लेकिन मैं तो एक गर्वीला कवि हूं। उनके ठहरने से मैं इसको तीर्थ-स्थान नहीं मान सकता। तुम मानना चाहो तो मानो । मैं तो यह चाहता हूँ कि जहाँ मैं ठहरता हूँ, उसे दूसरे लोग तीर्थ मानें !"

"जैसी तुम्हारी मर्जी ! पर जल्दी नाटक लिख दो, बस !" "मेरी पांडुलिपि को अच्छी तरह कोई टाइप करके देनेवाला मिले तो सही..."

"हाँ : याद आया। कल की 'इंटरव्यू में उसी माधवी नाम की लड़की नेकहा