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42/यह गली बिकाऊ नहीं
 


जैसे मशहूर तो नहीं।"

"मेरे कहने का मतलब वह नहीं । मैंने तो बैठकर बातें करने के लिए सहूलियत देखी!"

"जहाँ जाओ, सहूलियत आप ही आप मिल जायेगी। इस सर्दी में कौन समुद्र- तट तक आयेगा?" मुत्तकुमरन ने कहा ।

कार को सड़क पर खड़ी कर दोनों समुद्र की रेत पर पैदल चले । दिसंबर की सर्दी और शाम के झुटपुटे में 'एलियड्स बीच' पर भीड़ ही नहीं थी। एक कोने में एक विदेशी परिवार वैठकर बातें कर रहा था। उनके बच्चे रंग-रंग की गेंदें उछाल-खेल रहे थे।

मुत्तुकुमरन् और माधवी एक साफ़ जगह चुनकर जा बैठे । समुद्र और आकाश सारे वातावरण को रमणीक बना रहे थे।

एकाएक मुत्तुकुमरन् ने माधवी से एक प्रश्न किया, "मावेलिकरै से मद्रास आने और कला के इस क्षेत्र में सम्मिलित होने की क्या आवश्यकता पड़ी और वह भी क्यों और कैसे?

इस तरह अचानक उसके सवाल करने की क्या वजह हो सकती है ----यह जानने की इच्छा से या स्वाभाविक संकोच से माधवी ने उसकी ओर देखा।

"यों ही जिज्ञासा हुई ! न चाहो तो मत बताना।"

"भैया भरी जवानी में मर गया तो हम माँ-बेटी मद्रास चली आयीं । फ़िल्मों के लिए 'एक्स्ट्रा' की भरती करनेवाले एक दलाल ने हमें स्टूडियो तक पहुँचा दिया। वहीं गोपाल साहब से मेरा परिचय हुआ "परिचय हुआ!"

माधवी ने कोई उत्तर नहीं दिया । उसके मन की परेशानी चेहरे पर फूटी । मुत्तु को अपने प्रश्न पर जोर देने की हिम्मत नहीं पड़ी। थोड़ी देर दोनों मौन रहे । फिर माधवी मौन तोड़कर बोली, "इस लाइन में मुझे जो कुछ तरक्की और सुविधा मिली हैं, उसके मूल में उन्हीं का हाथ है।"

"गाँव में तुम्हारा और कोई नहीं है क्या?"

"बाप का साया पहले ही उठ चुका था और जब भाई भी चल बसा तो हम मां-बेटी ही सब कुछ थे !" कहते-कहते उसका कंठ-स्वर सँध गया ।

मुसुकुमरन् को उसकी स्थिति समझते देर नहीं लगी। भरी जवानी में कमाऊ भाई के निधन हो जाने से पेट की चिंता में माँ-बेटी मद्रास आयी हैं । सौंदर्य, शारीरिक गठन, कठ-स्वर आदि से मलयाली होने पर भी साफ़-सुथरी तमिळ बोलने की योग्यता के चलते इसे तमिळ कला-जगत् में स्थान मिला है । इस सुन्दरी माधवी को मद्रास आने और कला-जगत् में प्रवेश पाने तक न जाने क्या-क्या दुख भोगने पड़े होंगे ! यह पूछने का विचार मन में आते हुए भी उसने कुछ पूछा नहीं। हो सकता