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यह गली बिकाऊ नहीं/49
 


"डर और सावधानी में फ़र्क होता है !"

"तुम इन दोनों का फ़र्क मुझे समझा रही हो?"

"जल्दबाजों और तुनुकमिजाजों को कितना भी समझाओ वे समझेंगे नहीं !"

मुत्तुकुमरन् बातचीत के इस रूखे दौर से उकताकर बोला, "बात-बात पर झगड़नेवाले बूढ़े मियां-बीवी की तरह हम कब तक लड़ते रहेंगे?"

यह उदाहरण सुनकर माधवी का गुस्सा काफूर हो गया और वह खिलखिला- कर हँस पड़ी। मुत्तुकुमरन् कुर्सी पर बैठी उसके कंधों पर हाथ रखकर झुकने को हुआ तो माधवी बोली, "चुप भी रहिए, जनाब ! काम करनेवालों से खिलवाड़ ठीक नहीं!"

"यह भी तो काम ही है !"

"पर गोपाल जी ने इस काम के लिए हमें यहाँ नहीं बिठाया ! फटाफट लिखिये ! नाटक जल्दी तैयार करना है। नाटक के प्रथम मंचन में अध्यक्षता के लिए मिनिस्टर से 'डेट' ले लिया गया है !"

"इसके लिए मैं क्या करूँ?"

"यही कि जल्दी लिख डालिए। बाद में अध्यक्षता करने के लिए मंत्री जी नहीं मिलेंगे !"

"इतनी जल्दी ही पड़ी थी तो मंत्री जी से ही नाटक लिखवा लेना चाहिए था।"

"नहीं ! बात यह है कि आज सवेरे आते ही उन्होंने कहा कि इधर-उधर घूमना छोड़कर पहले नाटक लिखवा लो । मंत्री महोदय से अध्यक्षता करने के लिए 'डेट' ले लिया है।"

"ओहो ! तुम यह समझकर मुझ पर नाराज हुई होगी कि 'बीच' पर जाने की बात मैंने ही गोपाल को बतायी होगी ! आज सुबह उठते ही वह मेरे पास आया और हमारे 'बीच' पर हो आने की बात छेड़ी तो मैंने क्या समझा, मालूम ? मेरा शक तो तुम्हीं परं गया कि तुम्हीं ने गोपाल को फोन किया होगा। असल में उसने ड्राइवर से पूछ-ताछ कर यह सब मालूम किया है।"

"वे बातें जाने दीजिए । अपना काम कीजिये !"

"जाने कैसे दूं ? वह भी इतनी आसानी से ? जबकि बात यहाँ तक बढ़ चुकी है।"

"बाद में हम अकेले में बैठकर इन बातों पर विचार करेंगे। अब जिल-जिल' के संपादक कनियळकन् के साथ गोपाल बाबू यहाँ आने वाले हैं । हम सब नाटक के लिए दृश्यावली चुनने के लिए आर्टिस्ट अंगप्पन के यहाँ जा रहे हैं ?"

"गोपाल तुमसे कह गया है क्या?"

"हाँ, अभी थोड़ी देर में वह जिल-जिल के साथ आयेंगे !"