तरह नजर आते । उनकी बोली में कोयल क्रूकती और हँसी में मोती झरते।"
अचानक अंगप्पन ने माधवी की प्रशंसा में बेतुकी तुक जोड़ी।
"हमारे गोपाल साहब भी मदुरै के एक बड़ी बाय्स कंपनी में पहले स्त्री की भूमिका ही किया करते थे !" जिल-जिल ने अपने हिस्से की तुकबंदी में भी कोई कसर नहीं रखी।
.. गोपाल को उसकी इस बात से रस नहीं आया, उल्टा गुस्सा ही आया । अपने उस गुस्से पर हास्य पोतते हुए उसने कहा, "लगता है कि जिल-जिल साहब सब कुछ भूल जाएँगे; पर मेरा स्त्री-पार्ट उन्हें नहीं भूलेंगे ! अजी, तुम्हारा दिल हमेशा स्त्रियों पर ही क्यों मँडराता रहा है ?"
माधवी और मुत्तुकुमरन् एक-दूसरे को देखकर मन-ही-मन मुस्कराये।
"मुत्तुकुमरन् साहब मशहूर कविराज की परंपरा के एक बड़े कवि हैं। अब हमारे गोराल साहब की कंपनी के लिए नाटक लिख रहे हैं। गीत-रचना में भी बड़े निपुण हैं !" जिल-जिल की करुणा की धारा भुत्तुकुमरन् पर बहने लगी तो अंगप्पन ने बात का एक छोर पकड़ लिया--"आहा ! वह जमाना अब कहाँ से लौटेगा भला ! जब किट्टप्पा मंच पर आकर 'कायात कानकम्' (पुराने समय का गाना गानें लगते तो सारी सभा झूम उठती । हाय, कैसा गला पाया था उन्होंने ! वह जमाना ही दूसरा था !'
जिल-जिल ने जो कुछ कहा था, उसका गलत अर्थ निकालकर, गायक और गीतकार का फर्क न जानते हुए, अंगप्पन ने किट्टप्पा की तारीफ़ करनी शुरू कर दी. थी। विवश होकर मुत्तुकुमरन् को उसकी बकवास सुननी पड़ी !
बात काटकर गोपाल ने अपनी ज़रूरत के दरबार, नंदन वन, राजवीथि और राजमहल जैसे दृश्यबन्धों की बात चलायी तो अंगप्पन ने अपने पास पहले ही से तैयार कुछ नये 'सोन' दिखाने शुरू किये।
गोपल ने मुत्तुकुमरन् से पूछा कि हमें कैसे-कैसे दृश्यों की जरूरत पड़ेगी? पर उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही वह अंगप्पन और जिल-जिल से इस बात में लग गया कि हमें अमुक-अमुक दृश्यों की जरूरत पड़ेगी। मुत्तुकुमरन् को उसका यह बर्ताद पसंद नहीं आया । लेकिन वह चुप्पी साधे रहा। दस मिनट के बाद, गोपाल ने मुत्तुकुमरन् की सलाह दोबारा चाही तो वह बोला, "जो-जो सीन तुम खरीदोगे, उसके अनुसार ही कहानी गढ़ लें तो बड़ा बस्छा रहेगा!"
- उसकी बातों के पीछे जो तीखा व्यंग्य था, उसे समझे बिना गोपाल बोला,
"हाँ, कभी-कभी ऐसा भी करना पड़ जाता है !"
मुसुकुमरन को गुस्सा आया । पर उसे पीकर वह चुप रह गया। गोपाल की बड़ाई करते हुए जिल-जिल ने अंगप्पन से कहा, "अंगप्पन, तुम्हें