पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
यह गली बिकाऊ नहीं/61
 


कितने का एक किलो आता है ?"

"बड़े अफ़सोस की बात है ! देखकर आश्चर्य होता है कि इतने नक़ली लोग मिलकर लाखों में रुपये कैसे पैदा करते हैं ?"

नाश्ता आ गया। बिना कुछ बोले दोनों ने नाश्ता पूरा किया। कॉफ़ी के आने में थोड़ी देर लगी। उस होटल में 'ऑर्डर' लेनेवाला कछुए की गति से आता और नाश्ता लानेवाला कछुए को पछाड़ देता था। इसलिए नाश्ता पूरा कर उठने में उन्हें एक घण्टे से अधिक का समय लग गया । लौटते हुए मुत्तुकुमरन् माधवी को उसके घर पहुँचा कर लौटा। . दूसरे दिन सवेरे, बिना किसी पूर्व-सूचना के, एक दिन पहले ही गोपाल लौट आया । आते ही नाटक के बारे में पूछकर अपनी उतावली दिखाई। कश्मीर से लौटने के दिन गोपाल कहीं बाहर नहीं गया। नाटक की एक प्रति ले जाकर अपने कमरे में बैठकर पड़ता रहा। शाम को छः बजे मुत्तुकुमरन को देखने आउट हाउस में आया । वहाँ माधवी और मुत्तुकुमरन् बैठे बातें कर रहे थे। गोपाल को अचानक वहाँ देखकर माधवी भय-भक्ति के साथ उठ खड़ी हुई । मुत्तुकुमरन् को माधवी का यह भय नहीं भाया।

"नाटक पढ़ लिया!"

"•••••••••"

"शीर्षक बदलना चाहिए । कोई दिलकश नाम ढूँढ़ना चाहिए । हास्य का कोई 'स्कोप' नहीं है। उसके लिए भी कुछ करना चाहिए।"

"•••••••"

"अरे, उस्ताद ! मैं कहता चला जा रहा हूँ। तुम तो जवाब ही नहीं देते !" "इसमें जवाब देने को क्या है ? तुम्ही सब कुछ जानते हो !" "तुम्हारा जवाब चुभता-सा लगता है !"

"••••••••"

"दिलकश शीर्षक देने में और बीच-बीच में हास्य को घुसेड़ने में हमारा जिल-जिल बड़ा फ़नकार है ! सोच रहा हूँ कि उसके हाथ स्क्रिप्ट' देकर दुरुस्त करवाऊँ!"

"छि:-छि: ! वह किस लिए? मेरे ख़याल में जिल-जिल से बढ़कर ऐसे कामों के लिए तुम्हारे पांडि बाजार के वातानुकूलित सैलून बाले हमाम ही ज्यादा काबिल हैं !"

"तुम खिल्ली उड़ा रहे हो!"

"गोपाल "तुमने क्या समझ रखा है ? यह नाटक है या कोई तमस्सुक ?"

सिंह की दहाड़ की तरह मुत्तुकुमरन का स्वर सुनकर गोपाल स्तंभित रह गया।

उसके मुख से शब्द नहीं फूटे। फटे तो कैसे फूटे ? काफी देर तक बिना कुछ कहे-