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युद्ध और अहिंसा


अपराध के लिए भी अगर जर्मनी के साथ युद्ध नहीं छेड़ा जा सकता, तो भी जर्मनी के साथ कोई सन्धि या मेलजोल तो निश्चय ही नहीं हो सकता। जो राष्ट्र न्याय और प्रजातंत्र की हिमायत का दावा करता है उसका भला उस राष्ट्र के साथ कैसे मेल हो सकता है जो इन दोनों का साफ़ दुश्मन है? या फिर इंग्लैण्ड इस तरह के सशस्त्र अधिनायकत्व की ओर्, उसके पूरे अर्थों में, भुक रहा है?

जर्मनी संसार को दिखला रहा है कि हिंसा पर जब किसी धूर्तता या दया-मया की कमजोरी का कोई बाधक आवरण न हो तो वह कितनी कारगर हो सकती है। साथ ही, वह यह भी बतला रहा है कि अपने नंगे रूप में यह कितनी कुरूप, भयानक और विकराल मालूम पड़ती है।

क्या यहूदी इस संगठित और निर्लज्ज अत्याचार का प्रतिरोध कर सकते हैं? क्या कोई ऐसा रास्ता है जिससे वे अपने को असहाय, उपेक्तित और् कमजोर महसूस किये बगैर अपने स्वाभिमान को कायम रख सकें? मैं कहता हूँ कि हाँ, है। ईश्वर में अटल विश्वास रखनेवाले किसी व्यक्ति को अपने की असहाय या लाचार समझने की आवश्कता नहीं है। यहूदियों का अधिक सगुण और वत्सल है, हालाँकि मूलतः वह भी उन सब के समान अद्वितीय और वर्णनातीत है। लेकिन यहूदी ईश्वर को सगुण व्यक्ति मानते हैं और उनका विश्वास है कि उनके सब