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यहूदियों का सवाल


कामों की वह देख-भाल रखता है, तो उन्हें अपने को असहाय नहीं समझना चाहिए। मैं अगर यहूदी होता और जर्मनी भ मेरा जन्म हुआ होता और वहीं मैं अपनी रोजी कमाता होता, तो मैं उसी तरह जर्मनी को अपना स्वदेश मानने का दावा करता जैसे कि कोई बड़े-से-बड़ा जर्मन कर सकता है और गोली से उड़ाये जाने या कालकोठरी में दफना दिये जाने का खतरा मोल लेकर भी मैं वहाँ से निकलने से इन्कार कर देता और अपने साथ भेदभाव का बताँव होने देना स्वीकार करता, और ऐसा करने के लिए मैं इस बात का इन्तजार न करता कि दूसरे यहूदी भी सविनय अवज्ञा में मेरा साथ दें, बल्कि यह विश्वास रखता कि दूसरे मेरे उदाहरण का अनुसरण अपने-आप करेंगे। मैंने जो यह नुसखा बतलाया है इसे एक या सब यहूदी स्वीकार करलें, तो उसकी या उनकी अब से ज्यादा बदतर हालत नहीं होगी। बल्कि स्वेच्छापूर्वक कष्ट-सहन से उनमें एक ऐसा आन्त्ररिक बल और आनन्द पैदा होगा जो जर्मनी के बाहर दुनियाभर में सहानुभूति के चाहे जितने प्रस्ताव पास होने से भी पैदा नहीं हो सकता। यह आन्तरिक बल और आन्तरिक आनन्द तो जर्मनी के खिलाफ़ ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका युद्ध-घोषणा करर्दे तब भी पैदा नहीं हो सकता, यह निश्चित है। बल्कि ऐसे युद्ध की घोपणा के जवाब में हिटलर की नापी-जोखी हुई हिंसा के फलस्वरूप सबसे पहले कहीं यहूदियों का कत्लेआम न कर दिया जाय। लेकिन अगर यहूदियों का मस्तिष्क स्वेच्छा