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यहूदियों का सवाल


समझते हैं उसके प्रतिरोध के लिए उन्होंने अहिंसा का रास्ता चुना होता तो क्या अच्छा होता! लेकिन सही और गलत के स्वीकृत अर्थों में, बहुत-सी विरोधी बातों के बावजूद, अरबप्रतिरोध के विरुद्ध कुछ नहीं कहा जा सकता।

यहूदी अपने को ईश्वर की चुनी हुई जाति कहते हैं। उन्हें चाहिए कि दुनिया में अपनी स्थिति की रक्षा के लिए अहिंसा के रास्ते को पसन्द करके अपने विशेषण को सही साबित करें। हरेक देश, यहांतक कि फिलस्तीन भी, उनका घर है, लेकिन आक्रमण द्वारा नहीं बल्कि प्रेमपूर्ण सेवा के द्वारा। एक यहूदी मित्र ने सेसिल रॉथ की लिखी किताब 'जगत् की सभ्यता में यहूदियों की देन' मेरे पास भेजी है। संसार के साहित्य, कला, संगीत, नाटक, विज्ञान, वैद्यक, कृषि इत्यादि को समद्ध करने के लिए यहूदियों ने क्या-क्या किया है, यह सब इसमें बतलाया गया है। यहूदी चाहें तो पश्चिम के अस्पृश्य बनने से, दूसरों से संरक्षण और हिकारत पाने से इन्कार कर सकते हैं। पशुबल के आगे तेजी से खत्म और ईश्वर से परित्यक्त होते हुए मनुष्यों के बजाय ईश्वर की चुनी हुई कृतिवाले मनुष्य बनकर वे संसार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं और सम्मान भी प्राप्त कर सकते हैं। यही नहीं, अपनी अनेक देनों में वे अहिंसात्मक कार्य की अपनी सबसे बड़ी देन भी शामिल कर सकते हैं।

'हरिजन-सेवक' : ३ दिसम्बर, १९३८