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युद्ध और अहिंसा


की भूल न करें। अहिंसक में हिंसा की इच्छा तो कभी भी नहीं हो सकती।

(३) अहिंसा हमेशा हिंसा की अपेक्षा बढ़ी-चढ़ी शक्ति रहेगी, अर्थात् एक मनुष्य में उसके हिंसक होते हुए जितनी शक्ति होगी उससे अधिक शक्ति उसके अहिंसक होने से होगी।

(४) अहिंसा में हार के लिए स्थान ही नहीं है। हिंसा के अन्त में तो हार ही है।

(५) अहिंसा के सम्बन्ध में पदि जीत शब्द का प्रयोग किया जा सकता है, तो यह कहा जा सकता है कि अहिंसा के अन्त में हमेशा ही जीत होगी। वास्तविक रीति से देखें, तो जहाँ हार नहीं वहाँ जीत भी नहीं।

अब इन उपसिद्धांतों की दृष्टि से ऊपर के तीन प्रश्नों पर विचार करें।

१-अबीसीनिया अहिंसक हो जाय तो उसके पास जो थोड़े बहुत हथियार हैं, उन्हें वह फेंक देगा। उसे उनकी जरूरत नहीं होनी चाहिए। यह प्रत्यक्ष है कि अहिंसक अबीसीनिया किसी राष्ट्र के शस्त्र बल की अपेक्षा न करेगा। यह राष्ट्र प्रात्म-शुद्ध होकर अपने विरुद्ध किसी को शिकायत करने का कोई मौका न देगा, क्योंकि वह तो तब सभी की कल्याण-कामना करेगा।

और अहिंसक अबीसीनिया जैसे अपने हथियार फेंककर इटली के खिलाफ नहीं लड़ेगा, उसी तरह इच्छापूर्वक या जबरन उसे सहयोग नहीं देगा, उसके श्राधीन नहीं होगा। अतः इटली हबशी