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युद्ध और अहिंसा


बुराई से बच सकता हूँ। मगर मैं यह नहीं करता क्योंकि इसकी मुझे आशा नहीं है कि यहाँ से हटने पर मुझे कोई ऐसा समाज मिल सकेगा जहाँ खेती न होती हो इसलिए किसी किस्म के प्राणियों का कभी नाश न होता हो । इसलिए यधपि यह कहते हुए मुझे दर्द होता है मगर तो भी इस आशा में कि किसी दिन इस बुराई से बचने का रास्ता मुझे मिल जायगा, मैं दीनता के साथ, डरते हुए और काँपते हुए दिल से बंदरों पर चोट पहुँचाने में शामिल होता हूँ।

इसी तरह में तीनों युद्धों में भी शामिल हुआ था। जिस समाज का मैं एक सदस्य हूँ उससे अपना संबन्ध मैं तोड़ नहीं सकता था। तोड़ना पागलपन होता। इन तीनों अवसरों पर ब्रिटिश सरकार के साथ असहयोग करने का मेरा कोई विचार न था। अब उस सरकार के संबंध में मेरी स्थिति बिलकुल ही बदल गयी है और इसलिए उसके युद्धों में मैं भरसक अपनी खुशी से शामिल नहीं होऊँगा तथा अगर शस्त्र धारण करने या और किसी तरह से उसमें शामिल होने को बाध्य किया जाऊँ तो मैं भले ही कैद किया जाऊँ या फाँसी चढ़ा दिया जाऊँ, मगर शामिल तो नहीं ही हूँगा।

मगर इससे प्रश्न अभी हल नहीं होता। अगर यहाँ पर राष्ट्रीय सरकार हो तो मैं भले ही उसके भी किसी युद्ध में शामिल न होऊँ, मगर तो भी मैं ऐसे अवसर की कल्पना कर सकता हूँ, जब कि सैनिक शिक्षण पाने की इच्छा रखने-