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पहेलियाँ


खोज पाया है। यह दलील अन्तिम है, क्योंकि वास्तविक अनुभव पर इसका आधार है। अगर इसलिए अपने सर्वोत्तम साथियों का मैं साथ छोड़ दूँ कि अहिंसा के विस्तृत सहयोग में वे मेरा अनुसरण नहीं कर सकते, तो मैं अहिंसा का उद्देश नहीं साधूंगा। इसलिए इस विश्वास के साथ मैं उनके साथ ही रहा कि अहिंसात्मक साधन से उनका हटना बिल्कुल संकीर्ण क्षेत्र तक ही सीमित रहेगा और वह अस्थायी ही होगा।

(४) मेरे पास कोई खास योजना तैयार नहीं है, क्योंकि मेरे लिये भी यह क्षेत्र नया ही है। फ़र्क सिर्फ इतना ही है कि साधनों का मुझे चुनाव नहीं करना है, चाहे मैं कार्य-समिति के सदस्यों से मन्त्रणा करूं या वायसराय के साथ, वे साधन सदा शुद्ध अहिंसात्मक ही होने चाहिए। इसलिए जो मैं कर रहा हूँ वह खुद ही ठोस योजना का एक अङ्ग है। और बातें मुझे दिन-ब-दिन सूझती जायेंगी, जैसे कि मेरी सब योजनाओं के बारे में हमेशा हुआ है। असहयोग का प्रसिद्ध प्रस्ताव भी मेरे दिमाग में कांग्रेसमहासमिति की उस बैठक में, जो कि १९२० में कलकत्ते में हुई थी और जिसमें यह प्रस्ताव पास हुआ, कोई २४ घंटे से भी कम समय में आया, और अमली रूप में यही हाल दाण्डी-कूच का रहा। पहले सविनय भंग की नींव भी, जिसे उस वक्त निष्क्रिय प्रतिरोध का नाम दिया गया, प्रसंगवश, भारतीयों की उस सभा में पड़ी, जो इन दिनों के एशियाई-विरोधी क़ानून का मुक़ाबला करने के उपाय खोजने के उद्देश से १९०६ में जोहान्सबर्ग में हुई