पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२२
युद्ध और अहिंसा


थी। सभा में जब मैं गया तो उस प्रस्ताव की पहले से मुझे कोई कल्पना नहीं थी। वह तो उस सभा में ही सूझा। इस सृजनशक्ति का भी अभी विकास हो रहा है, लेकिन फर्ज कीजिए कि ईश्वर ने मुझे पूरी शक्ति प्रदान की है, (हालाँकि वह कभी नहीं करता) तो मैं फ़ौरन अंग्रेज़ों से कहूँगा कि वे शस्र धर दें, अपने सब आधीन देशों को आजाद कर दें, ‘छोटे इंग्लैंडवासी' कहलाने में ही गर्वानुभव करें और संसार के सब निरंकुशतावादियों के बुरे-से-बुरा करने पर भी उनके आगे सिर न झुकायें। तब अंग्रेज बिना प्रतिरोध के मरकर इतिहास में अहिंसात्मक वीरों के रूप में अमर हो जायेंगे। इसके अलावा, भारतीयों को भी मैं इस दैवी शहादत में सहयोग करने के लिए निमंत्रित करूँगा। यह कभी न टूटनेवाली ऐसी साझेदारी होगी, जो ‘शत्रु' कहे जाने वालों के नहीं बल्कि उनके अपने शरीरों के खून से लिखे अक्षरों में अङ्कित हो जायेगी। लेकिन मेरे पास ऐसी सामान्य सत्ता नहीं है। अहिंसा तो धीमी प्रगतिवाला पौदा है। वह अदृश्य किंतु निश्चित रूप में बढ़ता है। और इस खतरे को लेकर कि मेरे बारे में भी ग़लतफ़हमी होगी, मुझे उस-और भी ‘क्षीण आवाज़' के अनुसार ही काम करना चाहिए।

हरिजन सेवक : ३० दिसम्बर १९३९