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वही पार लगायेगा


को पुकार रहा है। मेरी तरह संसार में बहुत लोग ऐसे हैं जो इस बुराई में से समय रहते मानव जाति को मुक्त देखने के लिए तरस रहे हैं। शायद आप ही ऐसे आदमी हैं, जो हमारी मदद कऱ सकते हैं। कृपया विचार कीजिए।

४६,पार्लिमेंट हेिल
लंडन, एन. डब्ल्यू. ३

आपका
कॉर्डर कैचपूल”

यह लेखक के पत्र का सार है। मैं जानता हूँ कि इसमें जो रवैया प्रगट किया गया है वही अनेक अंग्रेजों का है। वे कोई अच्छा रास्ता सुभाने के लिए मेरी तरफ़ देख रहे हैं। मेरे सत्तर साल पूरे होने के उपलच्छ में सर राधाकृष्णन ने जो अभिनन्दन-ग्रंथ छपाया है उससे शांति के हजारों उपासकों की आशायें गहरी हो गई हैं। मगर यह तो मैं ही जानता हूँ कि इन आशाओं की पूर्ति के लिए मैं कितना कमजोर साधन हूँ। भक्तों ने मुझे जो श्रेय दिया है उसका मैं हक़दार नहीं रहा हूँ। मैं अभी यह साबित नहीं कर सका हूँ कि हिन्दुस्तान बलवानों की अहिंसा का कोई बढ़िया उदाहरण दुनिया के सामने पेश करता है और न यह कि हमला करनेवाले के खिलाफ़ सशस्त्र युद्ध के सिवाय कोई और भी कारगर उपाय हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि हिन्दुस्तान ने यह तो दिखा दिया कि कमजोरों के हथियार के रूप में निष्क्रिय अहिंसा काम की चीज है। यह भी सही है कि आतंकवाद के बजाय अहिंसा उपयोगी है। मगर मैं यह दावा नहीं करता कि यह कोई नई या बड़ी बात है। इससे शांति के आन्दोलन को