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युद्ध और अहिंसा


कांग्रेस-सदस्य बनाना और उनको ट्रेनिग देना। क्या इस तैयारी को मुल्तवी कर देना चाहिए? मैं तो कहूँगा कि अगर काँग्रेस सचमुच अहिंसात्मक बन गई और अहिंसा की नीति के पालन में उसने ऊपर बताये हुए रचनात्मक कार्यक्रम को सफलता पूर्वक निभा लिया, तो निसंदेह वह स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकेगी। तभी हिन्दुस्तान के लिए अवसर होगा कि वह एक स्वतन्त्र राष्ट्र की हैसियत से यह फैसला करे कि उसे ब्रिटेन को कौन-सी मदद किस तरह देनी चाहिए?

जहाँतक मित्रराष्ट्रों का हेतु संसार के लिए शुभ है तहाँ तक उसमें कांग्रेस की देन यह है कि वह अहिंसा और सत्य का असली तौर पर पालन कर रही है और बिना कमी व विलम्ब किये पूर्ण स्वतन्त्रता के अपने ध्येय का अनुसरण कर रही हैं। कांग्रेस की स्थिति की परीच्ज्ञा करने और उसकी न्यायता को स्वीकार करने से आग्रहपूर्वक इन्कार करके और ग़लत सवाल खड़े करके ब्रिटेन असल में खुद अपने ही हेतु को नुक़सान पहुँचा रहा है। मैंने जिस तरह की विधान-परिषद का प्रस्ताव किया है उसमें एक के श्रलावा और सब दिक़कते हल हो जाती हैं-बशते कि इस एक को भी दि़क्कत मान लिया जाये। इस परिषद में हिन्दुस्तान के भाग्य-निर्णय में ब्रिटिश हस्तक्षेप के लिए अलबत्ता कोई गुॱजाइश नहीं है। अगर इसे एक दिक्कत की शक्ल में पेश किया जाये, तो कांग्रेस को तबतक प्रतीच्ता करनी पड़ीगी जबतक यह न मान लिया जाये कि यह न सिर्फ कोई दिक्कत नहीं।